डॉ बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर का जन्मदिन है ।
14 अप्रैल 1891 में मध्यप्रदेश में महू नाम के गांव में उनका जन्म हुआ था ।उनके पिता जी का नाम रामजी सकपाल था और माता कानाम सविता भाई था ।
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर यानी कि महामानव ,भारतरत्न ,बोधिसत्व, शिक्षाविद ,अर्थशास्त्री ,राष्ट्र की एकात्माता के लिए इस समाजमें दलित पिछड़े हुए संपूर्ण समाज को ऊपर लाने के लिए अपना जीवन संपूर्ण खर्च करने वाले और भारत की एकात्मता के खातिरअखंडित भारत बनाए रखनेक्वलिए अन्य धर्म न अपनाकर भारतीय मूल के बौद्ध धर्म को अंगीकार करने वाले महामानव बाबासाहेबआंबेडकर है।
डॉ बाबासाहेब क्या नहीं थे ?वह अच्छे लेखक थे ।शिक्षा शास्त्री थे ।अर्थशास्त्री थे ।पत्रकार थे ।वक्ता थे ।राजनीतिक थे ।कानूनविद थे ।और समाज सुधारक पत्रकार के नाते उन्होंने मुक नायक ,बहिष्कृत भारत और समता नाम का मैगज़ीन शुरू किया हुआ था,क्षमता का आगे जाकर नाम जनता और बाद में प्रबुद्ध भारत रहा।
आज से कई साल पहले एक मंदिर में बाहर स्नान करके आ रहे स्वामी जी के सामने एक बुड्ढी महिला जब सफाई कर रही थी तबमहाराज ने कहा आप दूर हो जाइए क्योंकि मैं अपवित्र हो रहा हूं तब वह महिला ने पूछा था आप बताइए कौन सी जगह जहां कोई नहीं है।और मैं वहां सफाई करूंगी तो अपवित्र नहीं होगा।स्वामी जी को लगा यह बड़ा तत्वज्ञान है ।आत्मालत सर्वभूतेषु ।स्वामी जी ने उनकीशिक्षा मानकर अपना मन को पवित्र कर दिया ।बाद में हर दिन जब नदी में स्नान करने जाते थे तब दो अपने शिष्य जो सवर्ण थे उनकेकंधे पर हाथ रखकर जाते थे लेकिन नदी में स्नान करके वापस आने के समय दो दलित शिष्यों के कंधे पर हाथ रखकर चलते थे ।वहनदी का पानी तो शरीर को स्वच्छ कर सकता है लेकिन मन को स्वच्छ समरसता ही कर सकती है।
आज उनके 131 वे जन्मदिन पर हम डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर को याद करेंगे ।उनका सिर्फ नाम स्मरण करना नहीं है ,उनकीवाहवाही करना सिर्फ नहीं है ,लेकिन उनके जीवन में रहे गुण और कार्य से प्रेरणा लेकर उनकी पगदंडी पर चलने का प्रामाणिक प्रयत्नकरना है ।जैसे कहा जाता है कि ईश्वर के और वेद के बारे में हरि अनंत हरि कथा अनंता ।लेकिन ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या ।डॉ बाबासाहेबके जीवन के बारे में बहुत कुछ बता सकते हैं लेकिन इतना बताएं कि भारत की अखंडता के लिए ,समरसता के लिए अपना जीवनन्योछावर करने वाले डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर थे ।
उन्होंने जो काम किया जो अमेरिका में श्वेत और अश्वेत के बीच में रहे तफावत -भेदभाव को दूर करने वाले मार्टिन लूथर किंग नेकिया था, नेशनल मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका में लिए अश्वेत लोगों के लिए किया ,जैसा गुलामी दूर करने के लिए अब्राहम लिंकनअमेरिका में किया ,ऐसा काम डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर ने भारत में किया है।
आज डॉ बाबासाहेब को विदा। लिए हुए काफी वर्ष बीत गए लेकिन उनके जीवन के कार्य की प्रेरणा अभी तक चालू है ।समाज केअंधकार को दूर कर रहा है और राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए चरित्र की महत्ता बताता है ।व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र के बिना यह देशप्रगति नहीं कर सकता ।एक अखंड देश के लिए आदर्श देने वाले थे डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर ।वह कहते थे मनुष्य निर्माण के लिएसंस्कार परिवर्तन चाहिए और सामाजिक समता दोनों महत्व की चीज है
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने आचार्य अत्रे द्वारा निर्मित चलचित्र "महात्मा फुले "का उद्घाटन फरवरी 1954 में किया था उन्होंने कहाथा "नैतिकता और चरित्र के बिना देश का कोई भविष्य नहीं है ।सरकार और कायदे कानून से सब कुछ नहीं हो सकता है ।सबके बीच मेंधर्म ही रहना चाहिए ।ऐसे धर्म सुधारक थे ज्योतिबा फुले ।जब धर्म पवित्र होता है तब सद्गुण आता है ।तब समझना चाहिए कि हमारे मेंधार्मिक ताई है।
आज जब देश में प्रांतवाद, भाषावाद ,भेदभाव ,अलगता ,अस्पृश्यता ,जाति भेद ,धर्म संप्रदाय स्वार्थ और संघर्ष के बातें दिख रही है ।स्वार्थी प्रवृतियां बढ़ रही है ।राष्ट्र की एक एकात्मताके लिए कई कई प्रश्न खड़े हुए हैं ।तब यह देश को सिर्फ कायदे कानून ,सरकारकुछ नहीं कर सकती ।इसके लिए चाहिए महापुरुषों ने बताया वह करे।
हमारे देश की एक कम नसीबी है कि हमने भगवान ,अवतार ,महापुरुष ,हर नेता तो को बांट दिया है ।जैसे बंगाल के लोग कहेंगेरवीन्द्रनाथ टैगोर हमारे हैं ,महाराष्ट्र के लोग कहेंगे लोकमान्य तिलक हमारे हैं ,गुजरात के लोग कहेंगे महात्मा गांधी और सरदार पटेलहमारे ,संत ज्ञानेश्वर कौन ब्राह्मण के ,संत तुकाराम को बनिया के ,भक्त नामदेव को दर्जी के ,गोरा कुंभार कुम्हार ज्ञातियोंके,संत रविदासकिसका ?महार जाति का ।ऐसे ही हमने डॉ बाबासाहेब आंबेडकर को एक दलितों का उद्धारक कहकर एक संकुचित कर दिया है ।वहफक्त पिछड़े हुए दलितों के नेता नहीं थे ।वो राष्ट्रीयता के विषय को पूजने वाले थे ।अनेक संघर्षों के बाद यह राष्ट्रीय एकात्मता औरअखंडता के लिए अपना जीवन न्योछावर करने वाले थे ।इसलिए हमें पूरे राष्ट्र के नेता के रुपमे याद करना चाहिए। वो कह रहे थे किजातीयता के वडवानल ने भगवान तथागत बुद्ध ,विवेकानंद, नामदेव ,तुकाराम कीसीको भी नहीं छोड़ा है ।उनको कि जातीयता केवडवानल में खाक कर दिया है।
दत्तोपंत ठेंगड़ी बताते हुए "बाबा साहब के समर्थक और उनके विचार के विरुद्ध के बीच में कितनी बड़ी खाई हो गई है कि लोगसंकुचित स्वार्थ के लिए उन्हें कुछ छोटे कोने में डाल रहे हैं ।वह उनके विचार कार्य और प्रेरणा के समझ नहीं रहे , यह समझना चाहिए ।उनको हम रामास्वामी नायकर और लालडेंगा जैसे अलगता वादी नेताओं के साथ कभी नहीं बिठा सकते।
1950 में अपने सम्मान का प्रत्युत्तर करते हुए डॉक्टर बाबा साहब ने कहा था कि "अब हमने देश के स्वतंत्रता पाई है ,लेकिन हमेंध्यान रखना चाहिए हम फिर गुलाम न बन जाए ।अब हमारे हाथ में सता है । सोच बदलनी चाहिए ।अब बात सिर्फ करेंगे ऐसा नहींचलेगा ।वह तो करते रहेंगे लेकिन देश की स्वतंत्रता की रक्षा करनी है ।हमारा देश कई बार स्वतंत्र होकर फिर पराधीन हो गया है ।हममुसलमान और अंग्रेजों के गुलाम रहे हैं ।स्वतंत्रता की सभी को जरूरत है ।यदि फिर गुलामीके दिन हो जाएंगेतो वह हमारा दुर्भाग्य होगा।
जब स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव चल रहा है हम स्वतंत्र हो गए ,कायदे कानून बनाए ,आरक्षण की व्यवस्था भी हुई है ।फिर भीबाबा साहब के सपनों का भारत हम अभी तक नहीं ला सके ।अभी भी समाज में कई जगह ग्रामीण इलाका में अशिक्षित और स्वार्थीलोगों के बीच हमें भेदभाव की नीति देखने को मिलती है ।कई स्थानों में मंदिरों में सब को प्रवेश नहीं है ।मंदिर में प्रवेश ,पानी का एकसमान स्तोत्र और सभी के लिए एक श्मशान होना ।यह आवश्यक बात है ।अब तो यह सब बात शासन और कानून से नहीं हो सकता है ।हमें हमारे मन में रहे भेदभाव को दूर करना पड़ेगा ।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य गुरु जी कहते थे अश्पृश्यता हमारे मनका कारोग है ।वसंत व्याख्यानमाला में संघ के तृतीय सरसंघचालक बाला साहब ने कहा था अगर "अस्पृश्यता पाप नही है तो और कुछ पापनहीं है।
यह सब परिस्थितियों का उपाय डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था ।उन्होंने कहाःदलितों को जागृत होना चाहिए ,शिक्षितबनाना चाहिए ,संगठित होना चाहिए अपने पैर पर खड़ा होना चाहिए और संघर्ष के लिए क्षमता अर्जित करनी चाहिए।"
समाज में रहे यह सब भेदभाव को दूर करने के लिए संपूर्ण समाज को एक करना है । समता सब देश के लिए बताया जाता है लेकिनसमता यह बाहर का दिखाओ ही एक ।ऐसा दिखता है ।लेकिन जो समरसता शब्दों का उपयोग करते हैं तो हुदयका भाव दिखाता है ।डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर ने भी कहा था कि समता स्वतंत्रता और बंधुता हो जाती है।संविधान में यह चीजें मैंने फ्रेंच क्रांति में से नहींलेकिन लिए भगवान तथागत बौद्ध के संदेश मिली है।
सामाजिक समरसता के लिए क्या करना चाहिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय कहते थे जब एक व्यक्ति खड्डे में गिरा है तो उनकोबाहर निकालने के लिए वह खड्डे में पड़े व्यक्ति को अपने पैरों पर थोड़ा ऊंचा उठना चाहिए और बाहरी व्यक्ति ने अपना हाथ देखकर उनको बाहर निकालना चाहिए ।आज समाज की स्थिति ऐसी है पिछड़े हुए लोगों को अपने पैर पर थोड़ा खड़ा होना चाहिए और विकसितलोगों ने उनका हाथ पकड़ बाहर निकालना चाहिए।
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1935 में जो वर्धा में लगे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शिविर में महात्मा गांधी जी आए और डॉक्टर हेडगेवार को पूछा कि यहां कोईपिछड़ीजातिके है क्या? बार-बार एक प्रश्न करने के बाद उन्होंने देखने को मिला कि भोजन पीटने वाले में कहीं लोग तथाकथित पिछड़ीजाति के थे तब गांधी जी के शब्द निकल गए मैं जो कुछ करना चाहता हूं वह आप कर रहे हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूजनीय गुरु जी भी संघ शिक्षा वर्ग में एक दलित स्वयंसेवक जब जलेबी पीरसोनेमें हिचकिचाहटकर रहे थे ,तब उन्होंने अपने पास बुला कर उनके हाथ से अपनी थाली में जलेबी ली थी।
डॉक्टर बाबा साहब और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई प्रसंग एक दूसरे के जानने के लिए मिले हैं।
हमारा हिंदू धर्म कहता है "आत्मावतसर्वभूतेषु " उडीपीमें हो गए विश्व हिंदू परिषद के सम्मेलनों में सब संतो ने एक साथ कहा था
"हिंदवा सोदरा सर्वे
ना हिंदू पतितो भव
हिंदू रक्षा मम दीक्षा
मम मंत्र समानता"
"सर्वे सुखिनः संतु सर्वे संतु निरामया "
आत्मीयता करुणा प्रेम हमारा धर्म के आचरण का आधार है
1924 में जुलाई के 30 तारीख को बहिष्कृत हितकारिणी सभा डॉक्टर बाबा साहब ने बनाई थी ।वह कहते थे बिछड़े हुए बंधुओं कोआगे लाने के लिए सभी वर्गों को साथ में आना चाहिए ।इसलिए उन्होंने बनाई इस सभा में अध्यक्ष के रूप में चिमनलाल सेतलवार,उपाध्यक्ष में जी के नरीमन ,दी.पा. चौहान डॉक्टर परांजपे और ब.खेर को लिया था ।वह खुद उपाध्यक्ष रहे थे ।उन्होंने अपने भाषण मेंकई बार बताया था अपनी ताकत सब राजनीति में लगाने की जरूरत नहीं है ।बहिष्कृत लोगों के हित के लिए सब लोगों को साथ मेंआकर काम करना चाहिए ।समाज का छठा भाग वह है। सबको साथ मिलकर काम करना चाहिए
जैसे अमेरिकन क्रांति में दो व्यक्ति हो गई ब्यूरो राष्ट्रीय और मार्टिन लूथर किंग ।बेड राष्ट्रीय जातिवाद और संघर्ष की बात कहते थे तोमार्टिन लूथर किंग सबको साथ लेकर एकता रखने के लिए कहते थे ।तो डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडक अब्राहम लिंकन और नेल्सन मंडेलाकी तरह विश्व मानव की तरह भारत में तथाकथित पिछड़े और दलित वर्ग को आगे लाने के लिए पूरा जीवन बिता दिया ।राष्ट्रीयस्वयंसेवक संघ के किशोर भाई मकवाना के पुस्तक की प्रस्तावना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है की जैसे मार्टिन लूथर किंगविश्वमानव है ऐसा ही काम डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर ने किया है ।लेकिन हमने उनका नाम एक छोटे से कोने में रख दीया है ।
१९५४ सोलापुर में 14 जनवरी के दिन वह डॉक्टर बीवी मोदी को मिले हैं और उन्होंने कहा था आप के कारण ही में विशाल सार्वजनिककाम में आगे रहा हूं ।ऐसा स्वर्ण लोगों के साथ भी बाबा साहब के बहुत अच्छे संबंध थे
।चवदार तालाब के सत्याग्रह के समय ब्राहमीनोने बताया कि आपके सत्याग्रह में से ब्राह्मण विरोधी शब्द निकाल दो तो हम आपकोमदद करेंगे ,तब बाबा साहब का जवाब था मेरा संघर्ष ब्राह्मण जाति के सामने नहीं है ,मेरा संघर्ष रीति रिवाज और परंपरा के सामने हैं ।दूसरे को हिन समझने की रुढीके सामने है मैं ।
अध्यापक ठाकरे को उन्होंने मिलन विद्यालय में रखा था तब जब अध्यापक ने पूछा आप ब्राह्मण के विरुद्ध क्यों बोलते हो ? और कामकरते हो ?तो उन्होंने कहा था मैं किसी जाति के सामने नहीं उनकी वृत्ति के सामने लड़ता हु। ऐसा होता तो आप ब्राह्मण को मैंने अपनेविद्यालय में नहीं रखा होता।
1936 में हिंदू धर्म के पालने वाले समाज के लोगों ने किया हुआ दुर्व्यवहार के कारण डॉक्टर बाबा साहब ने तय किया था कि मेराजन्म हिंदू धर्म में हुआ है लेकिन मृत्यु के पहले यह धर्म में नहीं रहूंगा ।1956 में उनकी मृत्यु हुई ।उनके पहले उन्होंने बौध्ध धर्म अंगीकारकर लिया था ।इस समय कहीं इस्लाम के मौलवी और ईसाई के पादरी उनके पास आए थे ।काफी कुछ उन्हें लालच बताई गई थी ।लेकिन फिर भी वह ईसाई और मुस्लिम में न बनते हुए उन्होंने कहा कि बौध्ध भारतीय मूल का धर्म है ।और राष्ट्र के विरोध में नही है औरकरुणा का प्रेम का है ।मैं ऐसे धर्म को अपना कर इस राष्ट्र के मूल में रहुगा।
महात्मा गांधी जी के साथ हम उन्होने वचन दिया था मैं कुछ देश के विरुद्ध और देश की अखंडता का भेद करनेका कभी कुछ नहींकरूंगा ।और वह अपने जीवन में सार्थक कीया ।
गोलमेजी परिषद के बाद जब अंग्रेजी सरकार ने अलग दलितोके लिए निर्वाचन पृथक क्षेत्र की जाहिरात की तब महात्मा गांधी जी नेकहा में दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र का हिमायती नहीं हूं ।उन्होंने आमरण उपवास जाहिर किया ।डॉ बाबासाहेब आंबेडकर उनकेविरुद्ध विचार के थे ।कई दिनों बातें चले बाद में मदन मोहन मालवीय ने मध्यस्था की और बाबा साहब और गांधीजी दोनों मान गए ।यहपूना पैक्ट हुआ और दलितों को अलग निर्वाचन क्षेत्र न देते हुए कांग्रेस ने अपने चुनाव क्षेत्र में काफी दलित लोगों को रखा।
1947 में संविधान सभा में उन्होंने कहा था कि अब हमें भेद अलगता और जातिवाद सब को भूल ना जाना चाहिए और राष्ट्र के रूपमें एकत्र होना चाहिए ।1948 में 25 नवंबर ने कहा था अब सब भारतीय है भाई बहन है। वह बोलते थे मेरा स्वभाव उग्र है ।मेरी विदेशयात्रा में लेकिन कभी भी मैने भारत की प्रतिष्ठा को आंच आने नहीं दी है ।प्रथम गोलमेजी परिषद में गए थे तब कई लोगों ने उन्हें दलीलप्रोटेस्टेंट हिंदू या नोन कम्युनिस्ट कहा ।वह बोलते मुझे ब्रिटिश एजेंट ,मुसलमान और हिंदू शत्रु कहते हैं ,उनके जवाब मैं कहता हूं मैं पहलेभारतीय हूं और राष्ट्रवादी हूं ।उन्होंने संविधान में उनकी समिति के अध्यक्ष बन कर जो काम किया वह काम ही अपना विचार बता रहा है।
बाबासाहेब आंबेडकर बता रहे थे राजकीय क्षेत्र ही सर्वस्व नहीं है ।चुनाव की टिकट के लिए इधर उधर दौड़ना और भेदभाव खड़ेकरके चुनाव जीतना यह ठीक नहीं है ।मैं अपने जाति बंधुओं के लिए बना रहा हूँ, लेकिन भेदभाव होना नहीं चाहिए । राष्ट्रीयता औरअखंडता मेरी प्राथमिकता है ।स्वतंत्रता का मुझे महत्त्व है और यह सब काम के लिए मैं अपने खून के अंतिम बिंदु तक काम करता रहूंगालड़ता रहूंगा।
स्वयंसेवक संघ के साथ कई बार उनका मिलना हुआ था ।1935 में पुणे में हुए शिविर में आए थे ।और बौद्धिक वर्ग भी लिया था ।१९३७ में वह विजयादशमी उत्सव में आए थे ।1948 की साल में बाबा साहब और गुरु जी का मिलन हुआ था और प्रथम प्रतिबंध मेंबाहर निकलने के लिए सरकार को क्या कहा जाए उनकी चर्चा हुई थी ।और वह बात डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर ने सरदार पटेल कोकही थी ।और संघ पर प्रतिबंध दूर करना चाहिए यह बात कही था ।1953 में बाबा साहब अंबेडकर स्थानिक चुनाव में खड़े थे तब उनकेसाथ उनकी मदद के रूप में दतोपंत ठेंगडीजीने काम किया था ।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में बता रहे थे कि आपकी नियति अच्छीहै ,लेकिन आपकी पद्धति में गति बहुत धीमी है ,और मेरे पास इतना समय नहीं है ।परिणाम आने तक मैं तब तक नहीं रुक सकता ।इसलिए मैंने अलग रास्ता अपनाया है ।मैं चाहता हूं कि आप संघ के लोग दलित और मुस्लिमों के बीच में दीवार बनकर खड़े रहो और मैंदलित और कम्युनिस्ट के बीच में दीवार बनकर खड़ा रहूंगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्वयंसेवकों ने कालाराम मंदिर में जहां बाबा साहब और अनुयायीओको प्रवेश नही मीला था वहाँसमरसता देखते हुए थोड़े समय पहेले शकय हुआ मंदिर में दर्शन और प्रसाद का कार्यक्रम आयोजित किया था ।इतना ही नहीं गुरुवायूरकी यात्रा में आ रहे सभी दलित बंधुओं का स्वागत और अन्य व्यवस्था की थी ।कर्नाटक में संतों की पदयात्रा ऐसे तथाकथित पिछड़े हुएवर्गों के निवास में भी की गई थी पेजावर पीठ के मठाधीश स्वामी विश्वेशतीर्थजी उस में रहे।
पाकिस्तान के बारे में उन्हें विचार बहुत स्पष्ट थे ।थॉट्स ऑन पाकिस्तान नाम के पुस्तक में उन्होंने यह भविष्यवाणी की थी ।उन्होंनेदलितों को सलाह दी थी कि आप पाकिस्तान में रहे सब दलितों अपने जो साधन मिले वह साधन के साथ आप भारत आ जाइए ।पाकिस्तान और निजाम के मुसलमान पर विश्वास न रखे ।वह आपको बता रहे थे क्या आप यहां रहिए और मुस्लिम लोग के साथ जुड़जाए यह कभी नहीं करना।
He said on 20th November 1949 that Muslim and Muslim league charge as they are with patient to make the Muslim has governing clause quickly as possible will never consider schedule cast I speak with experience .
उन्होंने अपने बंधुओं को कहा था आप मुस्लिम और मुस्लिम लीग के यह विषय में कभी भी विश्वास ना रखें क्योंकि वह तो देशद्रोही हैउनसे तो आपको हाथ धोना ही पड़ेगा।
जीवन में कुछ संदेश रूपी मंत्र कहे
उन्होंने स्त्री अधिकार के लिए स्वतंत्रता और हिंदू कोड बिल लाए
उन्होंने कहा सब लोगों को कहा आप शिक्षित बने
और स्वावलंबी बने ,संघर्ष के लिए संगठित परिश्रम करना ।सबको कंधे से कंधा मिलाकर काम करना ।बाहर का दिखावा नहीं लेकिनआत्मविश्वास के साथ काम करना ।आपको विश्व मानव बनना है ।आत्म दीपो भव और कैसे मेरे जीवन से ही मेरा संदेश मिलता है ।कभी मन में और अराष्ट्रीय विचार नहीं आना चाहिए ।अखंडता का रक्षण करना हमारा कर्तव्य बनता है ।आंदोलन से अधिकार मिलते हैंपरंतु मन परिवर्तन नहीं होता ।और बिन शिक्षित लोगों से शिक्षित लोग ज्यादा अधिक नुक़सान कर्ता अनैतिक हो सकते है ।इसलिएतैयार रहना जितना विज्ञान का महत्व का है ऐसा ही सब शिक्षण महत्व का है।
सामाजिक समरसता के लिए और अन्य पशु पक्षी प्राणी और जीवन पर लोगों के लिए प्रेम रखने वाले अनेक उदाहरण हमारे समाजमें मिलते हैं ।संत नामदेव जब रोटी लेकर कुत्ता भाग रहा था उनके पीछे दौड़े थे ।और कहा कि आप घी लगा कर जाइए ।स्वामीरामकृष्ण परमहंस अपने काम करने वाले सफाई के कामदार के घर रात को जाकर अपनी बढ़ी हुई दाढ़ी से उनका कर साफ़ किया था।विवेकानंद स्वामी जो केरलमें भेदभाव और अस्पृश्यता देखते हुए कहा था केरल एक पागल खाना है , वही विवेकानंद ने एक नायी केयहां उनकी रोटी खाई थी ।और चमार का हुक्का पीया था। महात्मा गांधी ने पूरा जीवन में सदा अशपृश्यता मिटाने का काम किया।
हमारे हिंदू संत महंत बता रहे हैं अस्पृश्यता कोई शास्त्र और धर्म के सम्मत नहीं है ।बाबा साहब की इच्छा थी उसका निवारणआंदोलन का स्वरूप न बनकर समभावका बने।हिंदू सुधारक आंदोलन होना चाहिए । मुंबई में 1928 में पंडित आरके शास्त्री काक्षमता संघ द्वारा आंतरिक भोजन संयोजन में जब 500 महार जाति के लोग आये ,तो बाबा साहब वहां उपस्थित रहे थे ।चवदार तालाबके सत्याग्रह में लोकमान्य तिलक के पुत्र शुभकामनाएं भेजी थी।
महात्मा गांधी जी के हरिजन शब्द के साथ डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर सम्मत न होकर क कहा था यह शब्द से लेकर एक आश्रितकी भूमिका हो जाती है।
बाबासाहेब आंबेडकर कहते थे कि मैं स्वतंत्रता की संघर्ष के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हूं ।लेकिन मुझे यह विश्वास दिला दो किस्वतंत्रता के बाद मेरे समाज की स्वतंत्रता मिलेगी और उनका अपना अधिकार मिलेगा।
डो अंबेडकर जीवन में कई अन्य समाजके उच्च लोगों ने उनके उत्थान के लिए काफी कुछ मदद की थी ।सातारा की प्राथमिकशाला में जब उनकी पढ़ाई शुरू हुई तब उनके गांव अंबडवे से उनकी अटक अंबडवेकर थी तो वहां के ब्राह्मण शिक्षक ने दूर कर कर उनकेपिता से संमति लेकर अपनी अंबेडकर दी थी।
केलुसकर पी नाम के एक शिक्षक हमेशा उनके साथ रहते थे ।जब वह मैट्रीकुलेट हुए तब महार जातीक् सम्मान के समय औरशिक्षक ने उन्हें गौतम बुध की जीवनी भेंट किए थी। इतना ही नहीं बड़ोदरा के महाराजा गायकवाड से मिलकर उन्हों के बी.ए.काग्रेजुएशन के लिए स्कॉलरशिप देने के लिए भी कहा था।
वही शिक्षक की बात पर बड़ोदरा के महाराजा गायकवाड ने डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर को विदेश में पढ़ने के लिए भी भेजा था।
बाबा साहब मिलिंद कॉलेज के प्रिंसिपल थे तब नवे आचार्य गजेंद्रगड़कर उनको लिया गया तो कई लोगों ने कहा कि आप पिछड़ीजाति के होते हुए ब्राह्मण शिक्षक को कब क्यों लिया तब उनका कहना था वह ब्राह्मण है इसलिए नहीं लिया योग्य प्राचार्य इसलिएलिया।
1932 गोलमेज परिषद में डॉ बाबासाहेब आंबेडकर गए थे उन्होंने कहा था कि हमें हमारे बंधुओं के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र कीजरूरत है ।लेकिन महात्मा गांधी ने उनका विरोध कहा किया था ।उन्होंने कहा था मैं मानता हूं हिंदू समाज में जाति भेद है परंतु यहकुरीति है उनको दूर करने के लिए चाहिए और मैं इनके लिए प्रयत्न कर रहा हूं ।लेकिन अलग निर्वाचन क्षेत्र मुझे मंजूर नहीं है मैं समाजको बांटना नहीं चाहता ।उस समय उनको दूर करने के लिए महात्मा गांधी ने जब उपवास शुरू किया बाद में मालवीयाजी ने डॉक्टरअंबेडकर और गांधी जी के बीच में पूना पैक्ट हुआ ।न कोई जीता न कोई हारा ।डॉ बाबासाहेब आंबेडकर एक राष्ट्र के नेता के रूप मेंनिखार आए।
जब संविधान सभा का निर्माण हुआ तब जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कोई विदेश से बड़े अच्छे संविधान के जानकार व्यक्ति कोभारत के संविधान बनाने का काम बताया जाए ।लेकिन महात्मा गांधी जी ने डॉक्टर बाबा साहब का नाम दीया और कहा जो प्रमाणिक हैनिष्ठावान है ज्ञात भी है । यह बात मान कर उनको संविधान सभा का अध्यक्ष बना दिया और उन्हें जो सविधान समर्पण किया ऐसा नमूनादुनिया में अन्य जगह नहीं मिलता है। संविधान में बाबा साहब ने निर्माण के साथ अस्पृश्य को समान अधिकार की बात की है ।अर्थशास्त्रके नाते उन्होंने ज्यादा योगदान दीया है ।वह हिंदू एनेथ्रोपोलेजीस्ट भी थे उन्होंने आर्य सिद्धांत का विरोध कहा था और कहा था आर्य कोईबाहर से नहीं आए । जब वह श्रममंत्री थे अंग्रेज की सरकारों में तब उन्होंने श्रमिकों के लिए काम करने का समय कम करना खाने पीने कीचीज देना और ओवरटाइम देना और दवाइयों की मदद करने का कहा था । उन्होंने जीते जी " रीडेल्स एफ हिन्दुइझम" पुस्तक लिखा थालेकिन जीते जी वह पुस्तक का प्रकाशन नहीं किया ।
एम शिवराज के शब्दों में बताया जाए तो जीवन जीते डो बाबासीहेब का मूल्यांकन नहीं हुआ अब उनके जीवनके बाद कामूल्यांकन उनके जाने के बाद ज्यादा हो रहा है ।हमारे देश की कम नसीबी है जब महापुरुष जीवित होते तब उनको लोग इतना नहीं मानतेइतना उनके जाने के बाद बताया जाता है
बाबा साहब ने लिखे हुए पुस्तक में राष्ट्रप्रेम का दर्शन होता है ।उनके समकालीन समाचार जब उन्हें देशद्रोही कह रहे थे कहीं लोगउनको भी अंग्रेजो के बगल बच्चे कह रहे थे तब उन्होंने राष्ट्रीयता की बात की है ।पीएचडी की डिग्री उन्होंने अंग्रेजों की खुशामद से नहींली है। क्वेश्चन ऑफ प्रोविंशियल फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया ऐसी बात कर कर 25 वर्ष की छोटी उम्र में उन्होंने पीएचडी की डिग्रीहासिल की थी और यह उन्होंने महाराजा गायकवाड को समर्पित कीया था।
यहां उन्होंने लिखा था ब्रिटिश सरकार का वहीवट कैसे चल रहा है ।किसान और कमजोर को शोषण की कैसी बात और सरकारउपेक्षा कर रही है ।वह बताएं
उन्होंने डीएसपी की पदवी ली और के लिए सरकार की आर्थिक नीति की बहुत टीका की थी।
रिस्पांसिबिलिटी आफ रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट ए रिसर्च पेपर ब्रिटेन में लिखकर उन्हें बहुत शोर मचा दिया था कि जैसे कोई क्रांतिकारीलिख रहा है।कहते थे दलितों की समस्या राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक दूर करनी चाहिए ।मुसलमानों के अलग मताधिकार काविरोध कर रहे थे ।साइमन कमीशन के कई मुद्दे के साथ सहमत नही ।थे इस देश के नागरिक प्रथम भारतीय है अंत में भारतीय है औरभारतीय के सिवा और कुछ नहीं है ।उन्होंने रिपोर्ट एवं इंडियन स्टेट्यूटरी में लिखा है
गांधी और जिन्ना की शब्दों में उन्होंने कहा कि मेरी बात मरोड़ तोड़कर लोग लिख रहे हैं ।लेकिन मैं कभी भी जिन्ना और मुस्लिम लीग केसाथ नहीं था मैं उनका टीका कार हु। प्रथम गोलमेज परिषद में भी कहा था कि दलित समाज की उन्नति करना मेरा धर्म है। तीसरीगोलमेज परिषद में उन्होंने राज्यों के अधिकार पर काम की बात की थी और कुछ पुख्त मताधिकार और महिलाओं के लिए विधेयक रखेथे।
पाकिस्तान के बारे में वह बताते थे कि लाहौर मिंटो पार्क 1924 जीन्हा से और मुस्लिम लीग ने अधिवेशन में अलग मुस्लिम राज्य कीमांग की थी ।थॉट्स ऑन पाकिस्तान में बताते हैं इसमें जो वर्णन है वह सिर्फ पाकिस्तान तक नहीं है पाकिस्तान अफगानिस्तान आगेजाकर दारुल इस्लाम बनाने की योजना है।
उन्होंने लश्कर के अच्छे पुनर्गठन की बात की है।
1942 में शेड्यूल कास्ट फेडरेशन अधिवेशन नागपुर में हुआ था और दलितों ने मुस्लिमों से अलग रहने के लिए उन्होंने सावधानी केबात किए थे ।उन्होंने कहा था कि निजाम भी भारत का शत्रु है और उनके पर भी किसी दलितों को विश्वास नहीं रखना चाहिए ।जब वहश्रम मंत्री थे तब दुर्गादास ने लिखा है कि हम बैठकर सर्वोत्तम व्यक्ति थे ।1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय सब नेताओं को जेल मेंसे काले पानी की सजा देकर आंदामान निकोबार भेजने वाले थे उन्होंने उनका विरोध किया और कहा If you are going to do like this then I will resign from cabinet बाद मे रुकना पड़ा।
स्वतंत्रता के समय पार्टीशन हुआ तब पाकिस्तान से आए हुए निराश्रित दलित को लेकर काफी कुछ काम किया ।इतना ही नहीं शेखअब्दुल्ला को भी बताया था कि आप कश्मीर का एकीकरण भारत से कर दो और वह ३७० कलम के विरोध में थे।
जीवन के कुछ प्रश्न महाराष्ट्र में सतारा नाम का छोटा गांव वहां पीडब्ल्यूडी के स्टोर कीपर का काम कर रहे रामजी सकपाल केयहां १४ में संतान के रूप में एक बच्चा जन्म लेता है जब थोड़ा बड़ा होता है तो अपने माता-पिता को बताते हैं मुझे स्कूल में पढ़ने के लिएजाना है तब पिता ने बताया आप वहां नहीं पढ़ सकते है ।अगर आप जाएंगे तो वहां भेदभाव का अनुभव आपको होगा और आप सामनाकरना पड़ेगा । फिर भी वह तैयार हुए और उन्होंने प्रवेश लिया । दूसरे विद्यार्थी उनके साथ नहीं बैठते थे ।सबका खाने-पीने का भी अलगरहता था ।उनको बैठने का क्रम पैरों के जूते रखने की जगह रहते थे और बाबासाहेब आंबेडकर कभी ब्लैक बोर्ड पर जाकर कुछ लिख भीनहीं सकते थे क्योंकि अन्य विद्यार्थियों के टिफिन वहां रहते थे।
छोटी उम्र में माता का निधन होने जाने के बाद पिता और सब संतान मुंबई में एक छोटे से कमरे में रहे ।वह छोटे से कमरेमे रहकरउनके लिए सोने का खाने का पीने का और सबके लिए रूम था ।सरकारी स्ट्रीट लाइट में पढ़कर उन्होंने मेट्रीक्युल्ट कीया । महारजातियाँ पहेली वह पास होनेस् उनका सम्मान किया गया और वही समय उनके पुराने शिक्षक केलुस्करने उन्हें गौतम बुध की जीवनी कीपुस्तक भेंट नहीं थी। उनके अभिप्राय से बड़ोदरा के राजा गायकवाड़ ने उन्हें ७० रुपया स्कॉलरशिप दी और उन्होंने एलफिंस्टन कॉलेज मेंप्रवेश लेकर बीए की डिग्री 1912 में हासिल की ।थोड़े समय के लिए उन्होंने नौकरी थी ।उस समय उनका लग्न हो गया था लेकिनपिताजी की मृत्यु 1913 में हो गई वह अकेले पड़ गए।
जब वह विदेश में गए तब इकोनॉमिक्स के विषय में उन्होंने पीएचडी की ।कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वह सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी रहे ।सोशल रजिस्ट्री और एंथ्रोपोलॉजी उनके विषय थे ।मिशन -डिवाइडेड कास्ट सिस्टम इन इंडिया इस विषय पर उन्होंने स्टडी कीया ।
अपना अभ्यास पूर्ण करने के बाद जब महाराजा गायकवाड के यहां नौकरी में लगे तब उन्हें काफी कुछ भेदभाव का अनुभव हुआ।उनका टेबल और कुर्शी ऑफिस में एक कोने में रखी जाती थी ।वहां का पीयुन उनको पानी भी नहीं देता था ।चलने के लिए जाजमनिकाली जाती थी ।इतना ही नहीं फाइल भी हाथ से नहीं देते हुए फेंकते थे ।बड़ोदरा में कुछ रहने का स्थान भी नहीं मिला एक पारसीहोटल में फर्जी नाम से रहे उन्होंने थोड़े दिन बाद मालूम ने के बाद निकाल दिया ।फिर वह बड़ौदा छोड़ दीया ।
थोड़े समय उन्होंने इन्वेस्टमेंट के लिए काम किया लेकिन वहां भी डो काम लाता था जो उनको दलित समझ कर उनके पास कामकरने के लिए तैयार नहीं थे ।बाद में उन्होंने सिडन हम कॉलेज में पॉलिटिकल इकोनॉमिक्स के विषय के प्रोफेसर काम किया इस समयभी स्टाफ रूम में उनके पानी के पीने का स्थान अलग रहता था ।कोल्हापुर के राजा साहू ने उनको इकोनॉमिक्स के अभ्यास के लिए लंदनभेजने में मदद की थी।
उन्होंने अपने जीवन में अपने दलित बंधुओं को अगर लेने के लिए संघर्ष की मानसिकता खड़ी करने के लिए चवदार तालाब में पानीपीने के लिए सत्याग्रह किया था ।अपने कालाराम मंदिर के दर्शन का भी सत्याग्रह किया था ।पंढरपुर यात्रा के लिए जो पत्नी ने कहा तोउन्हें ना कहीं और कहा की मै दूसरा पंढरपुर खड़ा करूंगा।
1936 में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी उन्होंने खड़ी की थी और १९३७मुंबई में इलेक्शन भी लड़ा था। सरकार में श्रम मंत्री रहे थे ।डिफेंसएडवाइजर पी रहे थे और वायसरॉय एग्जीक्यूटिव काउंसिल के मेंबर थे ।राज्य सभा के मेंबर भी कांग्रेस की सरकार के बने थे औरजवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्डलमे क़ायदा मंत्रीक् स्थान पर थे।
पढ़ने के लिए क्या कुछ करना चाहिए विदेश में पढ़ रहे थे और पत्नी के पास पैसा नहीं था तो उन्होंने लिखा था आपके पास कितनापैसा है चला लो जरूरत पड़ने पर अपने गहने बेच डालो।संविधान सभा मे 7 सदस्य थे लेकिन सभी नियमित नहीं थे ।कोई बाहर गांव थे।कोई बीमार रहता था ।कोई अटेंड नहीं करता था ।उन्होंने अकेले हाथ में उसने संविधान निर्माण किया था।
आज के समय में संपूर्ण देश की अखंडता के लिए गए और राष्ट्रीय एकता के लिए समाज के सभी वर्गों को एक साथ मिलकर रहनापड़ेगा ।यह सामाजिक समरसता के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित अनेक देशभक्त व्यक्तिपरक संगठन और समाज मे काम कररहे हैं ।हम कहीं भी हो ऐसे अच्छे काम में जुड़ कर अपना जीवन भारत माता की भक्ति में प्रदान करें ऐसी अभ्यर्थना