आज हम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय संपर्क विभागके कार्याँलय गृहप्रवेश निमित्त एकत्र हुए हैं ।संघके कार्य कीशुरुआत १९२५ में नागपुर में हुई ।वो छोटा सा बीज आज बड़ा वटवृक्ष बना है ।शरु मे डो हेडगेवार और सब सवंयसेवक ,वही संघ और संघके सभी कार्य विभाग थे ।वैसे देखा जाए तो जैसे जैसे संघ बढ़ता गया ,कार्य विभाग बढ़ते गए ,व्यवस्थाएं बढ़ती गइ। सभी विभागों का कायँ शुरू से ही डो हेडगेवार ने खुद से शुरू किया था । वैसे देखा जाए सम्पर्क विभाग का काम वो खुद जहाँ जाते थे करते जाते थे। समाज मे जहाँ जाते वहाँ हिन्दू समाज में समाज का काम करने वाले अच्छे प्रतिष्ठित प्रामाणिक व्यक्ति को मिलना , संघ का काम क्या है वो बताना संघकी के लिए क्या समस्या है वो बताना और संघ कार्य के प्रति उनकी सहानुभूति मदद मिलती गई । अकृत्रिम प्रेम ,शील युक्त जीवन और सहज व्यवहार के कारण अनेक ऐसे सामाजिक सद्गहसथ संघ से जुड़ते गए ।
संघ का काम बढ़ा ,विभाग बढ़े और कई उनसे जुड़ते कार्य भी बढ़ते गए ।जैसे देखा जाए तो document, office वग़ैरह वग़ैरह । इसलिए अभी कार्यालयों की भी ज़रूरत हुई ।पहले तो डो साहब का अपना घर या अन्य किसी स्वयंसेवक का घर ही कार्यालय रहता था ।आज संघकायँ बढ़ा विभाग बढ़ें।
डो साहब जिनको मिलते थे वो, जुड़ते थे ,संघ प्रेमी बनते थे ,संघ में उनकी आस्था बढ़ती थी और संघ के अनुकूल होते थे । कई बार कई लोगों को मीलने के बाद डो साहब कहते थे मैं देव दर्शन करके आया । उनका मतलब था ऐसे व्यक्ति को मील के आया जो प्रतिष्ठित है लेकिन वह मूर्ति की तरह चलने वाला नहीं है फिर भी उनकी कृपा दृष्टि हमारे काम के लिए ज़रूरी हैं।
ऐसेऐसे भगवान को मिलने भक्त को जाना चाहिए ।
।और वो जाते थे मिलने के लिए कोई अपवाद नहीं थे न कोई दूसरी विचारधारा कि व्यक्ति हो , या विरोधी हुई उनको मिलने में उन्हें कोई हिचकिचाहट नहीं था ।उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो नागपुर में रहने वाले साम्यवादी राम भाव रुइकर वहा सुबह सुबह उनके घर गए और कहसुनो सुनो आज मुझे सपना आया कि शिवाजी महाराज समाधि में से बाहर निकले और फिर उनका राज्यकी स्थापना हुइ है ।आपको कैसा लगा रुइकरजी बोले अरे मैं तो मिठाई बाँटुगा। वो बोले हम संघ वाले यही चाहते हैं शिवाजी जैसा राज्य फिर से आये
यहाँ यह कार्यालय के लिए सद्ननारी ने अपना संपूर्ण घर दे दिया ये भी एक बहुत बड़ा समर्पण है । और संघ कार्य के लिए ऐसे समर्पण करने वाले कई लोग हैं ।ऐसे ही एक महिला जिनके पति military में थे उनके निधन के बाद अपने खुद केलिए ज़रूरी पैसा की उपरांत जो कुछ था उस सब कुछ संघ के सेवा कायँ के लीए दे दिया ।
वैसे दान का बड़ा महिमा है । एक बार देव ,दानव और मानव तीनों ब्रह्मा के पास गए और कहा हमें कुछ आज्ञा दें । ब्रह्माजी ने एक अक्षर कहा 'द' । देवों ने सोचा की हम मौज मजा में घूमते रहते हैं तो हमें हमारी इच्छाओं का दमन करना चाहिए । तो हमारे लिए द' का अर्थ है दमन । दानवों ने सोचा कि हम क्रोधी है हिंसक हैं और दूसरों को हैरान परेशान करते हैइसलिए हमें दया रखनी चाहिए तो हमारे लिए 'द' का अर्थ है दया । लेकिन मानव ने सोचा कि हमें 'द'से सीखना चाहिए दान देना । हमारे पास जो कुछ भी है और समाज के लिए अर्पण करना । तो यहाँ भी ऐसा ही धारणाओं को देखने को मिला है।
वैसे देखा जाए तो पुना बहुत विशिष्ट स्थान है । ऐतिहासिक शहर है ।सांस्कृतिक और स्वतंत्रता के कार्य कीवपुण्यभूमि रही है । संघ का नागपुर से बाहर जो अच्छा संघ कार्य जो हुआ उसमें से एक स्थान पुणे है । अब पूना में ये अखिल भारतीय कार्यालय बना हमारे लिए आनंद की बात है हम तो चाहते हैं कार्यालय पूना का ना रहते हुए , अखिल भारतीय ना रहते हुए , वैश्विक बने इसके लिए हम कार्य करते रहे। माननीय मोरोपंत जी की एक कही ही हुई बात याद आती है । वो कहते थे अन्य स्थानों में पहले आलय बनता है , बाद में कार्य । हमारे यहाँ पहले कार्य होता है बाद आलय बनता है और वह कार्यालय । भारत माता की जय हो
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