कच्छ से आगे की राह पर राधनपुर के रास्ते में पीपरालाव नाम का एक गाँव है । वहाँ के मुख्य मार्ग के पास एक धार्मिक स्थान है ।उसका नाम है डगायचा दादा।
ऐसा कहा जाता है कि राजा सिद्धराज जयसिंह एक बार शंकर भगवान का मंदिर बना रहा था ।ब्राह्मणों ने बताए हुए स्थान और रखे हुए लोहे का संकेत मज़दूरों से हट गया । नए बनने वाले मंदिर के पर कलश रखा जाना असंभव हुआ। बार बार मेहनत करने पर भी वो टिकता नहीं था । फिर ब्राह्मणों ने कहा कि अगर कोई 32 लक्षण वाले महापुरुष इसे रखें तो वो रह सकता है।
राजा के कहने पर राज्य का कवि - गढवी , ऐसे व्यक्ति को ढूंढने के लिए कच्छ में गए । वहाँ तृणा नाम के एक गाँव में ऐसे 1 व्यक्ति से मुलाक़ात हुई ।उनकी परीक्षा के लिए कवि ने एक नदी के पानी के बीच खड़े हुए वह व्यक्ति से धोती का दान माँगा।उनके देवत्व के कारण भगवान ने उन से धोती दिलवायी ।ऐसे सद्गुणी व्यक्ति मंदिर शिखर के कलश के ले जाने के लिए कवि तैयार हुए। पाटण जाते हुए रास्ते में पीपराला नाम के गाँव के पास , गाँव की गायों को लूंटके ले जाने वाले मुस्लिमों के साथ , वह व्यक्ति जिसे का नाम डगायचा दादा था , उन्होंने संघर्ष किया । चोर लुटेरे भाग गए ।लेकिन वो ख़ुद इजाग्रस्त हो गए। मंदिर के लिए वहा तक पहुँचना असंभव था । मंदिर के शिखर पर कलश लगाने के लिए उसने अपना एक हाथ काट के कवि को दे दिया ।और कहा कि यहाँ हाथ की वजह से वो काम हो जायेगा।
और डगायचा दादा ने , वहाँ ही अपना शरीर से आत्मा अलग कर दिया । और उनका स्मृति स्थान बना हुआ है । डांगर परिवार की आहीर लोगों के लिए वो पवित्र और प्रेरणादायी स्थान है ।छोटी सी गौशाला भी है ।यात्री लोग के लिए भोजन और रहने का प्रबंध भी है।
ऐसे प्रेरणादायी और प्राकृतिक स्थान पर सीमा जागरण के लिए काम करने वाली सीमा जनकल्याण समिति की बैठक हुई । भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो यहाँ कच्छ का बड़ा और छोटा दोनो रेगिस्तान पास पास है ।थोड़े से अंतर पर अपने पड़ोसी देशपाकिस्तान की सीमा है ।यह छोटा प्राकृतिक स्थान, न सिर्फ़ मुसाफ़िरों के लिए लेकिन कई धार्मिक बंधु भगिनी के लिए ही प्रेरणा देने वाला है।
गायों की रक्षा करना है , आये हए अतिथी की माँग पूरी करना और मंदिर जैसे अच्छे कार्य के लिए अपना शरीर भी न्योछावर कर ना , ऐसे दधीचि , शिबि राजा जैसे अनेक महापुरुष हमारे देश में हुए हैं । ऐसी कथाएं समाज को अन्य की मदद के लिए हमें अवगत कराते हैं डगायचा दादा की जय ।
Sunday, September 9, 2018
डगायचा दादा।
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