सेवाकी अवधारणा
“न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम्। कामये दुःखताप्तानांप्राणिनामार्तिनाशनम्॥”
मंत्र के साथ काम करने वाले हम सबके लिए
“सेवा है यज्ञ कुंड समिधा सम हम जले”
सेवा परमो धर्म ।
हिंदू संस्कृति सेवा द्वारा अपना कर्तव्य निभाना के रास्ता एक धर्म बतायाहै ।सेवा द्वारा समाज, राष्ट्र और विश्व का उत्थान हो सकता है ।स्व से ऊपरउठनेका क्रम और स्व से परमेश्वर की ओर गति ही समर्पण है और यही सेवाहै।
सेवा के लिए सिर्फ सेवा नही होनी चाहीए।अपने आत्माकी उध्धार औरपुण्य अर्ज करनेके लिए सेवा नहीं है। समाज के साथ अंगांगीभाव सेकरने वाला कार्य ही सेवा है ।सेवा से सामाजिक समरसता की और जानायही हमारा उद्देश्य है । कार्य पद्धति, कार्य संस्कृति ,प्रयोग ,परिणाम सबहमारे ध्येयकी ओर ले जाने वाले हो।
स्वामी विवेकानंद ने कहा है “दरिद्र नारायण भव” “रोगी नारायण भव”।
सेवा यानी सर्विस-नौकरी नहीं ।सेवानिवृत्ति शब्द भी ठीक नही । कोइसेवामे से निवृत्त नही हो सकता , नौकरीसे होता है।राजनितीमे नेता गणकहते है”मुझे सेवा करने का मौका दीजिए “ ।सता भी सेवा नहीं है।शक्तिकिर्ति पाना भी सेवा नहीं है ।मतांतर-धर्मांतरण के लिए करनेवाले काम सेवानहीं है।सेवा कया नहीं है ,यह जान लिया तो सेवा क्या है वह मालूम होजाएगा ।सेवा यानी धर्म । त्येनत्यकतेन भूजिंता ।सेवा मानसिकता हो।
सेवा के उदाहरण देखेंगे ।स्वामी विवेकानंद कोलकतामे प्लेग के समयभगिनी निवेदिता और अपने सभी शिष्यको काममे लगाया और बेलूर मठ केलिए एकत्रित सब पैसे उनमें खर्च कर दिया ।उन्होंने खुद ने भी वैद्यनाथधाम केपास नदी किनारे सोये हुए हैज़ा के मरिजकी अपने यजमानके घर लेजाकर उनकी सेवा की।डॉक्टर हेडगेवार ने भी कलकत्ता में बाढ़ में औरगंगासागर कोलेरा के समय सेवा की । पू गुरुजी कहते थे “ There is joy in giving” . भविष्य में सेवित जन सेवा करने वाले बनने चाहिए ( उदाकात्रेजी द्वारा रकतपित सेवा)।सेवा शासन आधारित ही न रहे। दिनदयालजीकहते थे अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए ।डॉ अशोक कुकडेजी का प्रयोग-लातूर विवेकानंद होस्पीटल यह उदाहरण है। जहां कम स्वास्थ्य सेवाएं वहांपहुंचनेकी बड़ी प्रेरणादायक कथा “ Passion to mission “मे बताइ है। पूबालासाहब देवरस कहते थे “Sewa is extension of RSS shakha”
सेवा के विषये में शिक्षा ,स्वास्थ्य ,सामाजिक संस्कार और स्वावलंबनअपेक्षित है ।सेवा एक भक्ति का स्वरुप है ।स्वास्थ्य सेवा एक आध्यात्मिकयात्रा है। सेवा से संपर्क ,संग्रह ,संस्कार और संगठन होता है। सेवा के द्वाराहमारी अपेक्षा है संस्कार बने ,सामाजिक परिवर्तन हो ,स्वास्थ्य का सुधार,संस्कारीत होनेके बाद लोगों का संगठन बने और व्यक्ति निर्माण से राष्ट्रनिर्माण की प्रक्रिया हो।
सेवा करनेसे स्वावलंबन,समर्पण,आत्मविश्वास ,संयम, दया ,करुणा, प्रेम और विनम्रता जैसे गुण निर्माण होते हैं ।सेवा कार्य भी संघ कार्य हैक्योंकि यह वयंम हिंदू राष्ट्रांगभूता का द्रश्य स्वरुप है।
हमारे विचार से सेवा करनेवाले संगठनोमे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ,राष्ट्रीय सेवा भारती, वनवासी कल्याण आश्रम ,विश्व हिंदू परिषद ,भारतविकास परिषद, राष्ट्र सेविका समिति ,विद्या भारती ,दिनदयाल शोध संस्थान,आरोग्य भारतीय और सबके साथ एन एम ओ खड़ा है।
सेवा करने के वाले के लिए प्रशिक्षण होना चाहीए। अच्छी बाते बनाना,कहानी ,प्रसंग ,बौध्धिक ,अनुभव और सेवा दर्शन -सेवा गस्ती दर्शन हो। सेवाकरने में टीम बनाना, अंतिम छोर तक जाना ,सबका सहभाग , विश्वसनीयताप्रमाणिकता ,प्रेम भाव ,डटे रहना , कार्य संस्कृति ,अनुशासन ,संयम,राष्ट्रीयता का भाव ,स्वदेशी पालन ,अनुशासन ,चरित्रनिर्माण जैसी बातेंरहनी चाहिए। सिर्फ कर्मकांड ना हो। धन का प्रभाव भी न हो और अभाव भी न हो।प्रचार प्रसार योग्य मात्रा में हो ।काम करने में अहं न आये, नीतिरितिका पालन हो और पथ्य परहेज का पालन करें ।शासन से ठीक अंतरबनाये रखें।
स्वास्थ्य सेवा में राष्ट्रीय विचार से चलने वाले हम है। शरीर माध्यमखलु धर्म साधनम ।दुख दर्द मिटाने आगे आये।कुदरती आफत हो, एपीडेमीकहो, स्वास्थ्य यात्रा हो, चल चिकित्सालय, मेडीकल केम्प हमे काम करना है।
हमारा स्वास्थ्य सेवा सुसंस्कारित हो ।
सेवा राष्ट्र धर्म है ।
“राष्ट्र धर्मतो कल्पवृक्ष है, संघशकति ध्रुव तारा
भारत फिरसे विश्वगुरु हो यह संकल्प हमारा “
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