प्रयागराज में अभी महाकुंभ मेला चल रहा है। मकरसंक्रांति से लेकर शिवरात्रि चलने वाला यह महाकुंभ 12 साल के बाद आया है ।समुद्र मंथन के बाद अमृत कलश ले जाने के समय अमृत के बिंदु जहां-जहां गिरे ये चार स्थान प्रयागराज ,हरिद्वार, उज्जैन और नासिक के स्थान पर कुंभ मेला लगता है ।दुनियाके लोगके लिए एक अजीब सवाल है यह एक ऐसा मिला है जहां कोई आमंत्रण देने वाला नहीं होता ।फिर भी हिंदू धर्म में मानने वाले सनातन हिंदूधर्मी कहीं भी हो अपने आप को कुंभ में आकर पवित्र स्थान करने का मन में इच्छा रखता है ।
इस बारकी यह प्रयागराज की कुंभ की यात्रा एक विशेष रही ।शासन प्रशासन की व्यवस्था ,स्वच्छता ,आए हुए लोगों की अनुशासन से चलने की क्षमता और एक दूसरे को मदद करने की भावना जगह-जगह को देखनेको मिली। गंगा यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर स्नान करना अपने आप जीवन में एक बहुत महंगा अवसर होता है। इनके लिए लोग कहीं दूर से अपने-अपने जो वाहन मिले उससे वहां आते हैं ।और चलते हुए ,परिश्रम करते हुए स्थान का आनंद लेते हैं ।इतनी ज्यादा लोगों की भीड़ होने के बजाय अपेक्षा से बहुत कम समस्या निर्माण होती है ।यह हमारा एक अनुशासन ही कहा जाए । इस बार यह कुंभ मेला का प्रचार प्रसार और लोगों में आने का आकर्षण बहुत बड़ा है। हमने देखा बहुत से युवा लोग अपने परिवार के साथ कुंभ में स्नान करने पहुंचे।देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर कई राजकीय, सामाजिक आगेवन और सभी पंथ संप्रदाय के संतों ने इनका लाभ लिया है। विशेष कर अनुसूचित जाति, जनजाति में लोकप्रिय संत ,शिख संप्रदाय के संत और बौद्ध धर्म के अनुयाई भी कुंभ में आए । एक समरसता का वातावरण निर्माण हुआ वसुधैव कुटुंबकम का दुनिया भर को आग्रह करने वाला देश है। 40 से 50 करोड लोग एक स्थान पर निश्चित समय मर्यादा में एकत्र होकर एक साथ मां गंगा की उपासना करें और त्रिवेणी संगम स्नान करें यह भारत में ही हो सकता है ।यही बताता है कि यही रास्ते से हम विश्व गुरु के स्थान पर अपनी नियति निभाते निभाते पहुंचेंगे। भारत माता की जय।
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