प्रेरणा पुरुष ,विश्व प्रसिद्ध ,विश्व शांति और समर्पण के लिए समग्र समाज और विश्व को प्रेरणा देने वाले पूजनीय प्रमुख स्वामीमहाराज के शताब्दी महोत्सव के संदर्भ में आज कर्णावती स्थान पर इसे ही महोत्सव के परिसर में शैक्षिक महासंघ के अवधान में हमशिक्षा की बात करने एकत्र हुए हैं। भारत में शिक्षा की बात अध्यात्म के बिना अधूरी है। शिक्षा और अध्यात्म साथ-साथ चलता है ।औरशिक्षा के आध्यात्म काइतना महत्व है वो जाने बिना संसार अधूरा है।
शिक्षा जीवन का श्रृंगार है। शिक्षा मानव की दुर्बलताओं के निवारण का सर्वोत्तम उपकरण है ।शिक्षा सद और असद का भेदसमझाने और विवेक की ज्योति उदीप्त करने की आत्मशक्ति है। शिक्षा का आदर्श सिर्फ नौकरी पाना या धन कमाना नहीं है ।यह सबबातें शिक्षा से जुड़ी है। लेकिन सब बातें तभी संभव है जब शिक्षा में आध्यात्म हो ।आध्यात्मिक- शिक्षा ,शिक्षा का एक भाग है।भारतीयसंस्कृति का मूल्य आध्यात्म है ।और इसके बिना शिक्षा शिक्षा नहीं कही जाती।
पाश्चात्य दृष्टि में साक्षरता को शिक्षा का पर्याय माना जाता है। साक्षर व्यक्ति को ही शिक्षित माना जाता है ।और औपचारिकशिक्षण ही शिक्षा है इसलिए कभी-कभी
साक्षरा: राक्षसा: बनता है
It is told that when skill, technolgy and intelectual power increase , there are all chances that ethics and moral value decrease ,unless it is connected education of अध्यात्म spirituality
2001 में अमेरिका में हुए आतंकवादी हमले और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टावर ध्वस्त करने वाले सहित सभी आतंकवादी घटनाओं मेंकाफी कुछ लोग पढ़े-लिखे साक्षर और आज के संदर्भ में शिक्षित थे। लेकिन अध्यात्म का ज्ञान नहीं था ।इसलिए दिखावे पनके हीधार्मिक थे। सिकंदर और जनरल डायर जैसे उदाहरण भी यही दिखाता है कि ।शिक्षा अध्यात्म के बिना अधूरी है।
जीवन की पाठशाला में उत्तीर्ण होना, सुख शांति समृद्धि पाना, उदार चरित्रवान बनना , अध्यात्म के सिवा कोई रास्ता नहीं है इसलिएशिक्षा और अध्यात्मिकता एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं ।आध्यात्म यानी सिर्फ उपासना, क्रियाविधि और क्रियाकांड नहीं है ,वो उनकाएक अंश है,संपूर्ण नहीं। जीवन मूल्य ,जीवन दृष्टि ,जीवन चिंतन और जीवन आचरण की बातें अध्यात्म में आती है।
मुंशी प्रेमचंद ने अपनी उपन्यास ' कर्मभूमि' मे कहा है कि
"शिक्षा की जरूर है
डिग्री कि नहीं"
हमारी डिग्री: हमारा सेवा भाव, हमारी नम्रता, जीवन की सरलता आत्मा की जागृति है ।इस सब के लिए प्रमाण पत्र जरूर नहीं है ।जीवन में आचरण महत्व है ,वह अध्यात्म से आता है।
नंदलाल बोस प्रख्यात चित्रकार जो रवींद्रनाथ ठाकुर के शांति निकेतन के कलागुरु थे ,उनके शिष्य अमृत वेगड़ को दीक्षांत के समयउन्होंने कहा था
"आपका जीवन सफल नहीं ,आपका जीवन सार्थक हो "
शिक्षा मे संस्कृति ,संरक्षण ,संवर्धन ,स्वावलंबन और संवेदनशीलता और समोजोन्मुख भाव अध्यात्म से ही मिलता है ।
कबीर और रैदास जैसे निरक्षर लेकिन आध्यात्मिक शिक्षा वाले पर PhD होता है।
ऐसी अध्यात्मिक शिक्षा का दायित्व भारतीय दृष्टि से समाज का है। क्योंकि यही शिक्षा राजनीति ,आर्थिक ,सांस्कृतिक औरसामाजिक बातों को प्रभावित करती है ।यह नहीं हुआ तो शिक्षा विद्या का अमृत कलश के बदले मादक मदिरा का घट बन जाएगा ।ऐसीशिक्षा को मैथिलीशरण गुप्त ने
"भारत भारती "में स्पष्ट शब्दों में श्राप दिया है
"शिक्षा तुम्हारा नाश हो ,तुम नौकरी के हित बनी"
There is a role of education in terror free world and world peace , this is only possible through education of spirituality and education through spirituality ,
Spiritual things should be included in education.
If this happens and observed in life then to possible to
solve problems. Tolerance observed in Akshardham attack by terrorist,
There are three problems in today's world
Global warming
Global terrorism and
Global recession .
Only the spiritual way of education through ( principles Hinduism ) it's possible to solve all this great problem
To remove rong belief,faith,jehadi things one should understand the value of education with spirituality, otherwise we can not stop so many such terrorist attack.
Adhyatm says
Not Eye for eye
No blind faith
No distortion
Examine by self and determine truth
And follow the scripture
this is the only possible from the education of spirituality not only at the school level only but at the family at the social organisation and society in large .
Confusis ,Jesus and even Mohammad paigambar has taken the way of spirituality but people have forgotten the real message and catches only outer words. In Mahabharat lord Krishna has told education should give rise to "योग: कर्मशु कौशाकम"
Studies should include adhyatm, scripture ,our inspiring stories.
There is a big example of Hindu school of USA, children are taught Hindu stories by elders on Sunday
Have great role model from society only.
The education means according to
Vedant and Buddha "know yourself ,keep balance and coordination between mind body ,intellectual and soul.
Education behaviour in society without any discriminations सामाजिक समरसता .
This type education can only transfer the
Walia to Valmiki Rishi
Can improve the Aingulimal
Same principles where applied by Vinoba Bhave and Jai Prakash Narayan to improve dacoits in Chambal.
2001 terrorist attack on twin tower or murder of Jessica Lal is result of today's education without character building. This is only possible through adhyaatm.
If you have a education and degree but Sheel is absence then it will result in danger as we know Arjun used Brahmashtra when it needed for the welfare not like ashvtthama who can throw the brahmastra but cannot withdraw it.
To have a men making education its only possible through adhyatma there is a poem
"wanted a man
Not system fit and wise
Not faith with rigid eyes
Not wealth in mountain piles
Not power with gracious smile
Not potent pen
But wanted a man"
Swami Vivekananda has also told
" I want a man with capital M"
Digenius was searching true man in day light with lentils.
Vivekananda also told that education brings out potential which is lying inside
Gandhiji's told that without spirituality education is like a dead body with a good smell.
Dr Abdul Kalam once have told that solutions of all problems of our Nations is by nationalising the man and spiritualizing the religion.
ऐसी अध्यात्मिक शिक्षा के लिए शिक्षक, टीचर नहीं किंतु आचार्य गुरु चाहिए ।पूज्य मोरारी बापू कहते हैं
सत्य निष्ठा ,सत्य जिनका धर्मा है ,प्रिय सत्य ,संस्कृति संवर्धन, समाज को दृष्टि और पुष्टि करने वाले ,
आचरण में खुद अनुभव करते हुए दूसरों के अज्ञान को मिटाकर ज्ञान का पुंज देने वाले ,
मानवता संस्कार सिंचन करके चारित्रवन विद्यार्थी खड़े करने वाले हमें आचार्य चाहिए ।
आचार्य यशोदा बन कर बाल कृष्ण विद्यार्थी का मुंह खोलकर उनके अंदर रहे ब्रह्मांड को दर्शना करे और कराए ।
शिक्षक नहीं आचार्य: आचरती इति आचार्य । जो
सेवा व्रती हो ,जो कर्मचारी नहीं ,कर्म योगी बने ।
हनुमान जी जैसा शिक्षा ,राम की सेवा करने वाले बने
तब अध्यात्मऔर शिक्षा का शुभम समन्वय संभावित है ।
शिक्षा और अध्यात्म के बीच सामंजस्य का उदाहरण हमें जितनी प्राचीन शिक्षा प्रणाली में विद्यमान होते थे वह आज नहीं होते हैं ।इसलिए ऐसे सेमिनार करके हमें चिंतन करने को मजबूर किया है ।जैसे शारिरिक शिक्षा शिक्षा का अनिवार्य अंग है ,वैसे मानसिकविकार पर काबू पाना और मानसिक रूप से प्रसन्न होने के लिए आध्यात्मिक शिक्षा का महत्व है । शिक्षा सशक्त माध्यम है जो यहसभी विकास करने में सक्षम है ।किसी भी कार्य की शुरुआत परमात्मा के शरण से होती है वह हमें अध्यात्मा सिखाता है ।अध्यात्म में तोधर्म के आधार पर अर्थ और काम की अपेक्षा की जाती है। शिक्षा में जब सिर्फ धन का महत्व और काम की पूर्ति का विषय आता है तबन सिर्फ व्यक्ति लेकिन समाज भी गिरता जाता है।
दुनिया में जितने भी धर्म और संप्रदाय है सभी की संकल्पना यही रही है कि मानव उत्थान के लिए और पशु में से उनको नर बनाने केलिए ,नर में से नारायण बना लेने के लिए अध्यात्म के सिवा और कोई चारा नहीं है ।स्वयं को नियमों में बांधकर जीवन पर्यंत तपस्याकरके भारत के अनेक ऋषि मुनियों ने यह महत्व बताया है जो वेद ,उपनिषद ,पुराण ,रामायण ,महाभारत जैसे हमारे ग्रंथों में विद्यमान है।
व्यक्ति में चरित्र का निर्माण समाज में समरसता ,सांप्रदायिक सद्भाव और यम नियम जैसे अष्टांग योग का पालन से ही आता है ।हमारे देश में न सिर्फ भगवान के अवतार लेकिन तुलसीदास ,वल्लभाचार्य ,सूरदास ,कबीर से लेकर नानक ,रामानुजाचार्य ,माधवाचार्य,शंकराचार्य आदि ने यही शिक्षा का महत्व बताया है सिर्फ धार्मिक शिक्षा नहीं अध्यात्म की शिक्षा का महत्व है और शिक्षा का भीआध्यात्म है।
शिक्षा के क्षेत्र में बने अलग-अलग आयोगोने अपने अनुभव और अनुसंधान में अध्यात्म का महत्व बताया है ।कोठारी आयोग ने तोकहा ही है कि भारत की शिक्षा का केंद्र बिंदु भारत में होना चाहिए. भारत centrilc not uro centric।अध्यात्म और शिक्षा के बारे मेंकुछ महानुभाव के हम बातें सुनेंगे तो
स्वामी विवेकानंद :शिक्षा का अर्थ है पूर्णता की अभिव्यक्ति और अध्यात्म का अर्थ है आत्मा की अभिव्यक्ति ।
अल्बर्ट आइंस्टाइन :अध्यात्मिक सर्वोपरि आत्मा की प्रस्तुति है
बेकन :अध्यात्म मनुष्य को पूर्ण बनाता है, तर्क उसे प्रयुत्पन बनाता है लेखन उस में पूर्णता लाता है
स्वामी विवेकानंद : अपनी आत्मा को आहवन करो देवत्व को प्रदर्शित करे।बच्चों को सिखाओ की आत्मा दिव्य और आत्मा सकारात्मकहै ,नकारात्मक प्रलाप नहीं
डेविड लिविंगस्टोन :शिक्षा के कई कार्य है ज्ञान को ध्यान से जोड़ना ,बुद्धि का विकास करना संबंधों को बढ़ाना और सभ्यता के संबंध मेंअध्यात्म की जानकारी देना ।
संत कैथरिन : मेरी आत्मा ईश्वर है अपने ईश्वर के सिवा किसी और को नहीं मानती ।
आध्यात्मिक शिक्षा का
प्रथम चरण अपने घर से कुटुंब से आरंभ होता है घर में दैनिक दिनचर्या पठन-पाठन पूजा और बुजुर्ग द्वारा की गई बातें ही आध्यात्मिकशिक्षा का प्रथम चरण है ।
दूसरा चरण जब विद्यालय में जाते हैं तब गुरु और शिक्षकों के पास से मिलता है और समाजसेवी कुछ बनता है ।
तीसरा चरण समाज में काम करते-करते अपने अनुभव के आधार पर और अन्य संस्था और संगठनों के माध्यम से बनता है ।
अध्यात्म और चरित्र का बहुत गहन संबंध है ।चरित्र के बिना व्यक्ति का महत्व नही है ।प्रहलाद का उदाहरण . जब उन्होंने शील कादान कर दीया तो उनके पास कुछ नहीं बचा। ।यह सब बातें भौतिकता से नहीं अध्यात्मिकता से आती है ।अपने अंदर ही निहित शक्तियोंका परिचय देने के लिए अध्यात्म का महत्व है। अध्यात्म की अनुभूति बंद कमरे की चार दीवार में नहीं होती वह तो अपने जीवनव्यवहार में लानी पड़ती है ।अपने आध्यात्मिकता के विचारों की पूंजी मातृभाषा के माध्यम से आती है ।सत्यम शिवम सुंदरम का अपनेजीवन और समाज में लाना ,विनम्रता ,अहिंसा ,शिष्टता मानवता, उदारता ,क्षमा आदि के गुण अध्यात्म के बिना संभव नहीं है ।
अध्यात्म रूढ़ियों और अंधविश्वासों का प्रबल विरोधी रहा है ।आध्यात्मिक शिक्षा में धैर्य ,आत्म संयम और क्षमा का संयोजन है ।अध्यात्म और शिक्षा के बहुत अंतर संबंध है ।शिक्षा का उद्देश्य निहित गुणों को व्यक्ति को अवगत कराना है ।लेकिन भौतिक संसाधन हीसब कुछ नहीं है यह दिखाना अध्यात्म का काम है ।
जैसे शिक्षा और अध्यात्म के बीच में गहरा संबंध है ऐसे अध्यात्म की शिक्षा का भी महत्व है ।वर्तमान सामाजिक परिवेश में आज कीयुवा पीढ़ी जो पैसे के पीछे दौड़ रही है उनको यह पता होना चाहिए कि हमारे दर्शन ,चिंतन ,विचार ,दृष्टि और हमारे सभी धर्म ने कहा है"क्षणिक सुखों के पीछे ना भागते हुए सात्विक और सनातन सुख इस ब्रह्मांड में सिर्फ अध्यात्म के सहारे मिल सकता है ।अध्यात्म केसैद्धांतिक और व्यावहारिक पक्षों की शिक्षा देनी चाहिए ।"
आज के इस सेमिनार में ऐसे विषयों की चर्चा होगी ऐसा मेरा मानना है।
यह सभी बिंदुओं को देखते हुए लगता है कि अध्यात्म और शिक्षा का गहरा संबंध है इतना ही नहीं अध्यात्म की शिक्षा का महत्वहै इसके बिना शिक्षा अधूरी है ।विद्यालय शिक्षा संस्थान बने और इसे तैयार करने वाले नागरिक तैयार करना राष्ट्र सेवा है ।यहां आए हुएसभी प्राध्यापक प्राचार्य गणों को यह काम मिला है।
"तत्वमसि
एकोहम बहुश्याम
आत्म सर्वभूतेषु
वसुदेव कुटुंबकम
सर्वे संतु निरामया
ईशावश्य इदं सर्वं
स्वदेशी भुवनाम त्रयम
जियो और जीने दो
संगछध्वम" हमारे जीवन सूत्र बने यही अभ्यर्थना
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