Thursday, July 26, 2018

श्रम ही श्रेष्ठ कार्य है







श्रम ही श्रेष्ठ कार्य है
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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का प्रारंभ से ही डॉक्टर हेडगेवार से लेकर अन्य सभी ने समाज की सेवा के कार्यों में हाथ लगाया है । डॉक्टर हेडगेवार जन्मशताब्दी के समय बाद संघ ने सेवा का अलग कार्य विभाग निर्माण किया । सेवा के विविध आयाम है।
सेवा कार्यों में एक कार्य है श्रम । श्रम कार्य का हर व्यक्ति को आदत होनी चाहिए और अपने श्रम से ना अपने ख़ुद का , परिवार का , किन्तु समाज और प्रकृति का भी ध्यान रखना चाहिए।
इस के लीए संघ ने अपने स्वयंसेवकों को श्रम की आदत हो इसलिए गुरूवार के दिन मनाया जाने वाला सेवा दिन में एक बार सार्वजनिक श्रम कार्य करने की बात रखी है।
सार्वजनिक कार्य में मंदिर परिसर ,रास्ता, बागान , महापुरुषों के स्टेच्यू और अन्य जनसुविधा के स्थानों पर स्वयं सेवक सामूहिक रूप से श्रम कार्य करते हैं ।इसका ध्येय अपने आप को श्रम की आदत डालना तो है ही इसके अलावा समाज के अन्य लोग भी सार्वजनिक कार्य में खुदका श्रम लगाएं यह अपेक्षा है ।
आज ऐसे ही मोरबी शहर में सुबह में लगने वाली संघ की शाखा के स्वयं सेवक सेवा कार्य करने हेतु गीतांजलि स्कूल के पास एक नाली के पास स्वच्छता का कार्य किया है । स्वच्छता के साथ वहाँ स्थानिक बुजुर्ग का वृक्ष स्थापन भी करेगे । तो ऐसे कार्यों से समाज को एक सीख लेनी चाहिए की सब काम के लिए सरकार और स्थानिक स्वराज्य की संस्था पर सिर्फ़ आधार न रखते, अपने हाथ जगन्नाथ का सूत्र अमल करना चाहिए ।
भारत माता की जय । वंदे मातरम

Wednesday, July 11, 2018

मान. श्री हरीशभाइ रावल के ७५ वे जन्मदिन पर संघमंथन

      

     राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पुराने प्रचारको में से एक , गुजरात के श्री हरीशभाइ रावल जिसने संघ मे कंइ साल विभाग प्रचारक और बादमे विद्या भारती में कई सालों तक संगठन मंत्री का कार्य निभाया उनका आज 75वाँ जन्मदिन था  
नडियाद के पास वसो गाँव स्थित विद्या भारती संस्थान से संलग्न श्री वसुंधरा संस्कार विद्याधाम समिति के द्वारा आयोजित इस दिन यज्ञ और माननीय श्री हरिशभाइ के अभिनंदन के लिए सभी कार्यकर्ता परिवार सहित एकत्रित हुए थे इस कार्यक्रम में संघ के सह सरकार्यवाह माननीय डो मनमोहनजी वैद्य ने कहा:
      संघ के प्रचारक वो समाज के लीए जीवन की प्राण समान है ,जैसे अपने शरीर में आँख ,कान ,नाक ऐसी इंद्रियां अच्छे काम करती है और उनके बदले में कुछ अपेक्षा रखती है लेकिन प्राण शरीर को निभाये रखने के लिए कुछ भी अपेक्षा नहीं रखते हैं अन्य इंद्रियां आराम भी माँगती है लेकिन प्राण कभी आराम नही करता है। 
यही बात दत्तोपंत ठेंगड़ी प्रचारक को मीलने की वजह बताते (अन्य व्यक्ति ओर से मिलते हुए )उनको मिलने की बात कहते हुए पंडित सातवलेकरजी ने कही थी।ऐसे प्रचारक शब्द भी संघ स्थापना के कंइ वर्ष बाद आया  
       मा. हरीशभाइ ऐसे व्यक्तियों में से एक है जो निवृत्त होने के बाद भी सक्रिय हैं निवृति में सक्रियता यही ऐसे कार्यकर्ताओं की देन है।
       हरीशभाइ साहसिक , आनंदी और अपनी ख़ुशी में रहने वाले कार्यकर्ता है विद्या भारती में कई अन्य कार्यकर्ताओं का निर्माण करने में उनका यह सह भाग रहा कंइ पूर्णकालीन कार्यकर्ता निकालने में और महिलाओं को इसके लिए प्रेरित करने में वो बोहोत यशस्वी  रहे सब लोगों ने उनको दादा के नाम से पहचान बनायी है।
           दायित्व से मुक्त होने के बाद भी वह स्वयंसेवकों के परिवार में रुकना और परिवारों की बात सुनना और उसमें स्वयंसेवकत्व बना रहे यह उनका कार्य रहा है सबको मिलना बहुत ज़रूरी है बिना काम मिलना और मिलते रहना ही समय की माँग है अब तो अनौपचारिकता के लिए भी औपचारिक समय निकालना पड़ता है हरीश दादा का यह कार्य बोहोत परिणाम दाई है। 
        अपने जीवन को सफल नहीं बनाना है किन्तु सार्थक बनाना यही नंदलाल बोस की अमृतभाइ वेगड ( शांतिवन मे चित्र शिक्षा के बाद) को दी हुइ आशीष संघ के कई कार्यकर्ताओं को लागू होती है अपने निजी जीवन व्यवसाय और पूजापाठ में सी भी संघ के लिए समय निकालना यह अनेक कार्यकर्ताओं के जीवनमे रह है।  
     कई स्वयं सेवकों को अपने विचार को साथ देने वाला कोइ साथी चाहिए , ऐसे समय में हरीश भाई जैसे प्रचारक साथ खड़े रहते हैं यही सबके लिए सुविधा रहती है परिवार में महिलाओं को कई बार अपनी बात या कुछ फरियाद बतानी है , उनके लिए ऐसे प्रचारक वडील की भूमिका अदा करते हैं।
       70 की आयु के बाद दायित्व से मुक्त होना है लेकिन कार्य करते रहना यह संघ के प्रचारक के लिए नया नही लेकिन अन्य के लीए प्रेरणा युक्त है। 
      आज के समय में कई लोगों को कुछ कहना है लेकिन सुनने वाला नहीं मिलता क्योंकि सुनने वाले के लिए भी अपने पास समय होना चाहिए संघ के कार्यकर्ता ऐसी व्यक्ति हैं जिनके पास ऐसी अपेक्षा है कि वो दूसरों की सुने और सुनने के लिए समय निकालें         इतना ही नहीं आत्मीयता जिसकी बात बहुत जरुरी है , लेकिन अनुभव में कम आती है। संघ बौद्धिकों में नहीं हैं संघ आचरण में है यही बताने वाले ऐसे कार्यकर्ता है जो हमारे जीवन की राह बनते हैं। 
      संघ के प्रचारक के जन्मदिन पर कुछ कार्यक्रम कार्यकर्ताओं को मिलने का , एक दूसरे से बातें करने का और बहुत से अच्छे कार्यकर्ताओं से जीवन में से प्रेरणा लेने के लिए यह किया जाता है इसमें व्यक्तिगत विषय कम रहते हैं , संघ के विषय ज़्यादा रहते हैं समाज जीवन के लिए हम क्या करे यह निष्कर्ष रहता है। 
      मा. हरीशभाइ रावल की दीर्घायु के लिए और स्वस्थ रहे और हम सब का मार्गदर्शन करते रहे इसी भगवान से प्रार्थना और शुभकामना