Friday, October 11, 2019

नानाजी देशमुख


आज नानाजी देशमुख का जन्मदिन है वह वास्तव में ऋषि थे।
         वह आरएसएस के स्वयं सेवक थे। वह प्रचारक थे और फिर राजनीतिक पार्टी जनसंघ और फिर भारतीय जनता पार्टी के लिए लंबे समय तक काम किया। वह सामाजिक कार्यों के एक व्यक्ति थे, जैसे ही जनता पार्टी इंदिरा गांधी को हराने के बाद आपातकाल और नए चुनाव जीतने के बाद सत्ता में आई, उन्होंने तुरंत राजनीतिक पार्टी छोड़ दी, भले ही वह उस समय जनता पार्टी के प्रमुख थे। उन्होंने सामाजिक कार्य के लिए चित्रकूट जिला मे शुरू किया।
उनका कार्यस्थल उन्होंने एक ग्रामीण लोगों के लिए जल संरक्षण, कृषि कार्य, लोगों के स्वस्थ ,पर्यावरण आयुर्वेदिक उपचार और लोगों के इन वास्तविक जीवन के कई पहलुओं पर काम करना शुरू किया।
        उन्होंने 2001 में भूकंप के बाद मोरबी क्षेत्र का दौरा किया। उनका मोरबी के राजवी परिवार के साथ बहुत अच्छा संबंध था। उन्हें भूकंप प्रभावित क्षेत्र का दौरा करने और आगे के पुनर्वास कार्य के लिए मार्गदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया गया था। वह मोरबी में राजवी परिवार के साथ कुछ दिन रहे और निर्माण करने का फैसला किया है जो रवापर नदी-गाँव चुना। 
      उन्होंने वहां का दौरा भी किया और उन्हें निर्देशित किया कि उस क्षेत्र में कैसे काम किया जाए। जब वह आरएसएस का आदमी था तो उसने 10 स्थानीय लोगों में से सभी आरएसएस के लोगों को आमंत्रित कीया था। मैं भी था।
         भूकंप प्रभावित क्षेत्र में RSS द्वारा नए पैलेस में चर्चा चल रही थी। उन्होंने उन तीन गाँवों का भी मार्गदर्शन किया, जिन्हें आरएसएस द्वारा रचनात्मक कार्य के लिए चुना गया था: जिवापर, रापर और देवगढ़।
        इस स्थान की यात्रा के बाद जब हम उसके साथ वापस आए और राजवी परिवार के साथ चर्चा करने के बाद, हमने जगह छोड़ना शुरू कर दिया। तुरंत उन्होंने कहा कि दोपहर का भोजन समाप्त होने के बाद ही जाएं और राजवी परिवार को भोजन की व्यवस्था करने के लिए कहें। वह प्रकृति की छोटी-छोटी चीजों की देखरेख कर रहे थे।
      इतना ही नहीं उन्होंने यह भी निष्कर्ष निकाला है कि एक गाँव जो आरएसएस के लोगों द्वारा चुना गया था, वह उचित नहीं हो सकता है और यह अच्छा नहीं होगा। हमें एहसास हुआ कि काम में काफ़ी बाधाएँ आइ। 
       उनकी सलाह से आरएसएस के लोगों ने रवापर पुनर्निर्माण और चीजों के वितरण में भी राजवी परिवार की मदद की।
    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय बैठक में चित्रकूट में हमें एक बहुत अच्छा अवसर मिला और उनके द्वारा किए गए सभी कार्यों का निरीक्षण करने और महसूस करने के लिए पता चला। वास्तव में नाना जी महान नेता थे और इन सांस्कृतिक, और आर्थिक और वास्तविक भारत में गांवों के हस्तांतरण के लिए प्रेरणादायक थे।
उसे प्रणाम
उन्हें पिछले साल भारत रत्न से सम्मानित किया गया था



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नानाजी देशमुख



Sent from my iPhoneआज नानाजी देशमुख का जन्मदिन है वह वास्तव में ऋषि थे।
वह आरएसएस के स्वयं सेवक थे। वह प्रचारक थे और फिर राजनीतिक पार्टी जनसंघ और फिर भारतीय जनता पार्टी के लिए लंबे समय तक काम किया। वह सामाजिक कार्यों के एक व्यक्ति थे, जैसे ही जनता पार्टी इंदिरा गांधी को हराने के बाद आपातकाल और नए चुनाव जीतने के बाद सत्ता में आई, उन्होंने तुरंत राजनीतिक पार्टी छोड़ दी, भले ही वह उस समय जनता पार्टी के प्रमुख थे। उन्होंने सामाजिक कार्य के लिए चित्रकूट जिला मे शुरू किया।
उनका कार्यस्थल उन्होंने एक ग्रामीण लोगों के लिए जल संरक्षण, कृषि कार्य, लोगों के स्वस्थ ,पर्यावरण आयुर्वेदिक उपचार और लोगों के इन वास्तविक जीवन के कई पहलुओं पर काम करना शुरू किया।
उन्होंने 2001 में भूकंप के बाद मोरबी क्षेत्र का दौरा किया। उनका मोरबी के राजवी परिवार के साथ बहुत अच्छा संबंध था। उन्हें भूकंप प्रभावित क्षेत्र का दौरा करने और आगे के पुनर्वास कार्य के लिए मार्गदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया गया था। वह मोरबी में राजवी परिवार के साथ कुछ दिन रहे और निर्माण करने का फैसला किया है जो रवापर नदी-गाँव चुना।
उन्होंने वहां का दौरा भी किया और उन्हें निर्देशित किया कि उस क्षेत्र में कैसे काम किया जाए। जब वह आरएसएस का आदमी था तो उसने 10 स्थानीय लोगों में से सभी आरएसएस के लोगों को आमंत्रित कीया था। मैं भी था।
भूकंप प्रभावित क्षेत्र में RSS द्वारा नए पैलेस में चर्चा चल रही थी। उन्होंने उन तीन गाँवों का भी मार्गदर्शन किया, जिन्हें आरएसएस द्वारा रचनात्मक कार्य के लिए चुना गया था: जिवापर, रापर और देवगढ़।
इस स्थान की यात्रा के बाद जब हम उसके साथ वापस आए और राजवी परिवार के साथ चर्चा करने के बाद, हमने जगह छोड़ना शुरू कर दिया। तुरंत उन्होंने कहा कि दोपहर का भोजन समाप्त होने के बाद ही जाएं और राजवी परिवार को भोजन की व्यवस्था करने के लिए कहें। वह प्रकृति की छोटी-छोटी चीजों की देखरेख कर रहे थे।
इतना ही नहीं उन्होंने यह भी निष्कर्ष निकाला है कि एक गाँव जो आरएसएस के लोगों द्वारा चुना गया था, वह उचित नहीं हो सकता है और यह अच्छा नहीं होगा। हमें एहसास हुआ कि काम में काफ़ी बाधाएँ आइ।
उनकी सलाह से आरएसएस के लोगों ने रवापर पुनर्निर्माण और चीजों के वितरण में भी राजवी परिवार की मदद की।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय बैठक में चित्रकूट में हमें एक बहुत अच्छा अवसर मिला और उनके द्वारा किए गए सभी कार्यों का निरीक्षण करने और महसूस करने के लिए पता चला। वास्तव में नाना जी महान नेता थे और इन सांस्कृतिक, और आर्थिक और वास्तविक भारत में गांवों के हस्तांतरण के लिए प्रेरणादायक थे।
उसे प्रणाम
उन्हें पिछले साल भारत रत्न से सम्मानित किया गया था

Thursday, October 3, 2019

पद्मश्री डो अेच अेल त्रिवेदी की कुछ यादे


       Dr HL Trivedi has gone for a long journey to heaven yesterday on 2nd October after fighting with ageing   process of life. He will be remembered as a great nephrologist and man of service to the poor in the field of not only nephrology, stem cell  and transplantation but as Rushi in medical field . He was awarded many times with different awards but Padma Shri is also not sufficient for the services which is rendered to the society as medical man poor poor and needy people of this country. After graduated from BJ medical College has gone to the abroad in USA ,worked in US and Canada and after coming back to work in native with "Moto of service of the people of native place" is an inspiration to the many of persons were settled abroad from the mother India 

is service to the people of India 

     He will be specifically remembered for his work for the patients of kidney diseases .

I had few occasions to remind me his nature and work . After my admission in the BJ medical College being meritorious student I was a CR in our first MBBS batch and I was a member of executive committee of gymkhana and the professor who was looking after the entertainment part of Gymkhana being a professor in charge of entertainment was Dr a Trivedi Sir . I had few occasion fir talking to him for entertainment programmes .

     I had a memory of black-and-white photograph of members of the committee with a different professors  in charge of different sections .

After my post graduation in surgery I was senior register under Dr Kukreti Sir.My marriagemarriage was taken place in  1987 .,After the marriage my wife Dr Purnima came to Ahmedabad as she wanted to do some medical work after completion of her MBBS and internship,  we met  to Dr HL Trivedi in the Department of kidney disease (at that time it was functioning in the zero block up civil Hospital ) I met him with my wife to him and I told that  I belong to Wankaner  and my wife is from  Mumbai ,yeah she wants to work locam post under your guidance .He was very happy that I am also student from Wankaner and married to Mumbai girl . He allowed Purnima to join next day  IKD. She is fortune that see worked as resident kidney hospital ,she learnt many things like a procedure of dialysis  within one month of period .She came to know the whole different hospitals in campus in short period as she has to attend first call fir renal problem . During her  residency,  she had experienced a very gentle and sober and  teaching nature of Dr Trivedi Sir.  His round in medical was in classroom For undergoing trainee . He was always smiling and teaching with a very light mood ,was liked by so many people.

      After many years of journey ,as I am working with RSS there was a training camp the RSS at Prerna pith near Ahmedabad and the concluding function of the camp May 2013 ,he was invited as the chief guest at that time .He was very happy to see young people undergoing training for patriotic work in a disciplined manner . At that time he remembered his school days of fun and recalled as he was going to the shakhas with nikar . He attended address of Pujniy Guruji also at Rajkot and he has gone with any of many other to attend the same at Rajkot  . He also pleased to remember his read portion from Guruji about his-advise for kidney patients .He appreciated the RSS work and told that I will be ready to help in  any medical a work related to me of my speciality been brought from the people of just like you . Dr Aruna Vanikar and Dr Vinit Mishra also same quality of service to people and patriotism who will be now main pillars of institutes .

My Pranam to such great soul . 



डॉ एचएल त्रिवेदी जीवन की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया से लड़ने के बाद 2 अक्टूबर को स्वर्ग की लंबी यात्रा के लिए चले गए हैं। उन्हें केवल नेफ्रोलॉजी, स्टेम सेल और प्रत्यारोपण बल्कि चिकित्सा क्षेत्र में रूशी के रूप में एक महान नेफ्रोलॉजिस्ट और गरीबों की सेवा के लिए याद किया जाएगा। 

         उन्हें कई बार विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, लेकिन पद्म श्री उन सेवाओं के लिए भी पर्याप्त नहीं है, जो इस देश के गरीब और जरूरतमंद लोगों को मेडिकल मैन के रूप में प्रदान की जाती हैं। बीजे मेडिकल कॉलेज से स्नातक होने के बाद यूएसए और अमेरिका और कनाडा में काम करने के बाद विदेश में काम करने के बाद "मूल स्थान के लोगों की सेवा के मोटो" के साथ मूल रूप से काम करने के लिए विदेश वापीस गये। विदेश में बस गए लोगों के लिए एक प्रेरणा है भारत माता से और भारत के लोगों के लिए सेवा है।

         उन्हें गुर्दे के रोगों के रोगियों के लिए उनके काम के लिए विशेष रूप से याद किया जाएगा।मुझे उनके स्वभाव और काम को याद दिलाने के लिए कुछ अवसर याद आते है। बीजे मेडिकल कॉलेज में मेरे छात्र मेधावी छात्र होने के बाद मैं अपने पहले एमबीबीएस बैच में सीआर था और मैं जिमखाना की कार्यकारी समिति का सदस्य था और वो प्रोफेसर जिमखाना के मनोरंजन का हिस्सा था, मनोरंजन के प्रभारी प्रोफेसर थे। डॉ। त्रिवेदी सर। मेरे पास मनोरंजन के कार्यक्रमों के लिए उनसे बात करने के लिए कुछ समय था।

     मेरे पास अलग-अलग वर्गों के प्रभारी प्रोफेसरों के साथ समिति के सदस्यों की श्वेत-श्याम तस्वीर थी।

सर्जरी के बाद मेरी पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद डो कुकरेती सर के तहत सीनियर रजिस्टर था। मेरी शादी 1987 में हुई थी। शादी के बाद मेरी पत्नी डो पूर्णिमा अहमदाबाद गईं, क्योंकि वह अपनी एमबीबीएस और इंटर्नशिप पूरी होने के बाद कुछ मेडिकल काम करना चाहती थीं। हम गुर्दे की बीमारी विभाग में डॉलएचएल त्रिवेदी से मिले (उस समय यह सिविल अस्पताल के जीरो ब्लॉक में कार्यरत था) मैं अपनी पत्नी के साथ उनसे मिला और मैंने बताया कि मैं वांकानेर का हूं और मेरी पत्नी मुंबई से है, हाँ, वह आपके मार्गदर्शन में लोकम पद पर काम करना चाहती है। वह बहुत खुश थी कि मैं वांकानेर काछात्रा हूँ और मुंबई की लड़की से शादी कर ली है। उन्होंने पूर्णिमा को अगले दिन IKD में शामिल होने की अनुमति दी। वह सौभाग्यशाली हैं कि रेजिडेंट किडनी अस्पताल के रूप में काम करती हैं, उन्होंने एक महीने की अवधि में डायलिसिस की एक प्रक्रिया की तरह कई चीजें सीखीं। उन्हें कम अवधि में कैंपस में पूरे अलग-अलग अस्पतालों के बारे में पता चला क्योंकि उन्हें पहली कॉल रीनल समस्या में शामिल होना पड़ता था।,अपने निवास के दौरान, वह थ। डो त्रिवेदी सर के एक बहुत ही सौम्य और शांत और शिक्षण प्रकृति का अनुभव किया। चिकित्सा वल्र्ड का राउन्ड प्रशिक्षका कलासरुम हो जाता था। वह हमेशा बहुत हल्के मिजाज के साथ मुस्कुराते और पढ़ाते थे, इतने लोगों द्वारा पसंद किया गया था।

      कई वर्षों की यात्रा के बाद, जैसा कि मैं आरएसएस के साथ काम कर रहा हूं, अहमदाबाद के पास प्रेरणा पीठ में आरएसएस का एक प्रशिक्षण शिविर था और मई 2013 के शिविर के समापन समारोह में उन्हें उस समय मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। वे बहुत खुश थे। अनुशासित तरीके से देशभक्ति के काम के लिए प्रशिक्षण ले रहे युवाओं को देखें। उस समय उन्होंने अपने स्कूल के दिनों को याद किया और याद किया क्योंकि वे निक्कर के साथ शाखा मे गये थे। उन्होंने राजकोट में पूजनीय गुरुजी के संबोधन में भी हिस्सा लीया था की और वे राजकोट में एक ही समारोह में भाग लेने के लिए किसी अन्य के साथ गए। उन्होंने गुर्दा रोगियों के बारे में अपनी सलाह के बारे में गुरूजी से अपने पढ़े अंश को याद करते हुए प्रसन्नता व्यक्त की।       


      उन्होंने आरएसएस के कार्यों की सराहना की और बताया कि मैं किसी भी चिकित्सा में मदद करने के लिए तैयार रहूंगा, जो कि मेरी विशेषता से संबंधित एक काम है, जो सिर्फ लोगों के लिए लाया गया है आप की तरह डॉ। अरुणा वणिकर और डॉ। विनीत मिश्रा भी लोगों और देशभक्ति की सेवा का एक ही गुण हैं, जो अब संस्थानों के मुख्य स्तंभ होंगे।

ऐसी महान आत्मा को मेरा प्रणाम





Thursday, June 20, 2019

Inaugural Function of workshop of Granth “ Yasholata” written by Muni Bhagavant Shri Bhaktiyash Vijayji maharaj






Indian Council of philosophical research , सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी और दिव्य दर्शन ट्रस्ट द्वारा आयोजित 'यशोलता 'नाम के ग्रंथ जो ' गूढ़ार्थ तत्वलोक' नामका सबसे बडा 'तर्कविद्या' विषय के ग्रंथ, उन पर लिखा गया विश्लेषणात्मक ग्रंथ -पर हो रहे कार्यशाला के उदघाटन मे उपस्थित रहने सौभाग्य मुझे मिला ,इसके लिए मैं बोहोत आनंदित हु।
    आचार्य भगवंत श्री यशोविजय सूरीश्वर महाराज के शिष्य मुनिराज श्री भक्तियश विजयजी महाराज ने गूढ़ार्थ तत्वलोक नामके ग्रंथ का विश्लेषण करके यह कार्य कीया है। मूल ग्रंथ    गूढ़ार्थ तत्वलोक जो सर्वतंत्र स्वतंत्र  श्री धर्मदत झा ने लीखा है। यह तर्कशास्त्र का व्याख्या करने वाला सबसे बडा ग्रंथ है।
        दुनिया में सबसे पुरानी विरासत हमारे देश की है थॉमस आलवा एडिसन ने जब अपनी आवाज़ मुद्रित हो सके इसके लिए जो रिकॉर्डिंग यंत्र बनाया , वहा उन्होंने सबसे पहले आवाज़ देने के लिए मैक्स मूलर के पास गए और मैक्समूलर ने " अग्नि मीलें पूरोहितम" श्लोक कहा जो दुनिया की सबसे पुरानी ग्रंथ " रुगवेद" से है हमारे देश का ज्ञान वैभव और संस्कृत भाषा सबसे पुराना है तो विदेशियों को भी आकर्षित करता है।
       यशोलता पुस्तक में 90 हज़ार श्लोक  हैं 5500 पूष्ठ हैं और १४ भाग है।                                                 
    आज यहाँ यह कार्यशाला में सब विद्वत लोग आए हैं यह हमारे लिए आनंद की बात है। सबका स्वागत ,अभिनंदन और साधुवाद।
       संस्कृत देव भाषा है और अनेक भाषाओं की जननी है। यह भाषा में सभी चीजे हकारात्मक है , कोई नकारात्मक नहीं संस्कृत में सभी इंक्लूसिव है कोई भी एक्सक्लूसिव नहीं है। यशोलता ग्रंथ की कंइ विद्वानोने भूरी भूरी प्रशंसा की है यह ग्रंथ विद्या के क्षेत्र में चमत्कार है।
       जब हमारे देश की विरासत की बात आती है तो हमारा अपने लोग ही मानने को तैयार नही होते। डॉक्टर अब्दुल कलाम अपने मित्र वास. एस.राजन के साथ एक पुस्तक लिखी है India 2020 vision for new millennium वो बताते हैं भारत महा शक्ति है लेकिन इसके लिए अपनी बातों पर ,अपने इतिहास पर ,अपने लोगो को गौरव होना चाहिए एक बार बता रहे थे की अपने कक्ष में एक मित्र आए और उन्होंने जब कक्ष की दिवार पर लगे हुए कैलेंडर दिखा तो उनकी प्रिंटिंग जो जर्मनी में हुई थी तो,वो प्रशंसा करने लगे लेकिन जब अब्दुल कलाम ने बताया कि यह प्रिंटिंग का जो फोटो है वो भारत के उपग्रह ने लिया हुआ है अब वो आश्चर्यचकित हो गए और संदेह के साथ मानने के लिए तैयार हुए।  
         एक बार एक कॉन्फ़्रेन्स के समय रात्रि भोजन में कई वैज्ञानिक मित्रों के साथ बात करते समय उन्होंने कहा कि लड़ाई में उपयोग होने वाले रॉकेट का आविष्कार भारत ने किया था और सबसे पहले टीपू सुल्तान ने ब्रीटीश के युद्ध मे उनका उपयोग किया था यही बात उन्होंने लंदन के पास ब्रुलिज के रोटुण्डा म्यूज़ियम में देखा।जो भारत के युद्ध में से मिले हुए थे। भारत के वैज्ञानिकों अब्दुल कलाम के विषय में सहमत नहीं हूए। लेकिन दूसरे दिन का डो  कलाम लाइब्रेरी में से सर बर्नार्ड लोवेल का पुस्तक The origin and international economic's of space exploration इसमें लिखा गया था ब्रिटिश ने टीपु सुल्तान के युद्ध के समय के बचे रोकेट  के अवशेष  विलियम  कोनग्लेव पास लाये ओर अपने अभ्यास से नये रॉकेट बनाया जो विलियम पीट ने १८०५ मे युद्ध के लीए मंजूर कीया ओर १८०६ में  नेपोलियन के साथ युद्ध मे उनका उपयोग हुआ ऐसा सुनने के बाद सब 
सब लोग सहमत हुए। 
    पोकोक ने पुस्तक लिखा है India in Greece  यह बताया है कि बाक़ी के देशों में जो फ़्रेम उनकी की है लेकिन अंदर का ज्ञान जो है भारत का है। प्रख्यात वैज्ञानिक प्रफुलच्द्र रोय जो इंग्लैंड में केमेस्ट्री के उच्च  अभ्यास करने गए थे लेकिन जब उन्हें कहा गया था कि अपने देश का विज्ञानका गर्व है तो बताये ,तब उन्होंने अपने पुराने ग्रंथों में से कैमिस्ट्री का ज्ञान  इकट्ठा करके पुस्तक लीखा Hindu chemistry . 
यह कार्यशाला से ऐसे ज्ञान की अच्छी चर्चा के बाद नया मक्खन निकले यह अपेक्षा के साथ शुभकामना  







Tuesday, April 16, 2019

समाज , सामाजिक समरसता और शिक्षण




" समाज , सामाजिक समरसता और शिक्षण"

डॉक्टर बाबासाहब अंबेडकर के नाम पे बहोत डीसकोर्सीस होते हैं ।उनके जन्मदिन पर उनके जीवन का जो लक्ष्य था वहीं यानी की सामाजिक समरसता पसंद किया गया है यह एकदम समयोचित है।
डॉक्टर बाबासाहब को लोग कहीं ऐसे विषय से जुड़ते हैं जो उन्होंने कभी जीवन में सोचा ही नहीं था ।ऐसे भी विषय जुड़ देते है। उदा. 
-डॉक्टर बाबासाहब और सान्यवाद
 -डॉक्टर बाबासाहब और मूल निवासी 
-डॉक्टर बाबासाहब एंटी हिन्दू 
-और डॉक्टर बाबासाहब मार्कस 
         उदाहरण के तरीक़े देखा जाए तो अभी अभी जिसका नाम से लाइम लाइट मे आया है ऐसे नक्सल एक्टिविस्ट डॉक्टर आनंद टेल टुम्बडे वो कहते थे कि बाबासाहेब का  महाड -चवदार तालाब का संघर्ष , लालाराम मंदिर के प्रवेश का संघर्ष अधूरा रहा , छोड़ना पड़ा तो अगर मार्क्स के तरीक़े से काम करते तो सफल होते अम्बेडकर विचार को आगे ले जाना है क्लास और कास्स्ट का मार्कस  के रास्ते पे जाना चाहिए

        डॉक्टर बाबासाहब के जीवन का ध्येय सामाजिक समरसता का था। उनकी सोच थी समाज के अंतिम व्यक्ति तक समस्याओं का हल होकर सुख सुविधा उन्हें मिलनी चाहिए या नहीं मिलती है तो दुख होता है और दुख के कारण की खोज डॉक्टर बाबासाहेब ने भी की और भगवान बुद्ध ने भी की।
         ये सब दुख दूर करने के लिए उन्होंने संविधान दिया , आर्थिक और सामाजिक ढांचा बदलने के लिए कैसे सहभागिता यह भी बताएँ फिर भी कोई भी दुख हल करने में सब लोगों की सहभागिता चाहिए ये उनका कहना था इसलिए उन्होंने महाड के तालाब के सत्याग्रह मे अन्य लोग भी जुड़े गये तथा कथित सवर्ण समाज के लोग भी जुड़े बिन दलित सामाजिक कार्यकर्ता भी जुड़े उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो मनुस्मृति में से कोइ पन्ने ठीक नहीं है एसे ढूँढने वाले उनके कार्यकर्ता है एक ब्राह्मण था। नाम सहस्त्रबुद्धे था। 
     सामाजिक समरसता लाने हो तो शिक्षा में कैसे अध्यापक चाहिए ये जानने के लिए एक उदाहरण है। औरंगाबाद में डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर ने मिलिंद स्कूल में अध्यापक के लिए फिजिक्स के प्रोफेसर डॉक्टर हटाटे के साथ इंटरव्यू की बातचीत में उन्होंने पूछा कि आपने अपनी पहली नौकरी कयु छोड़ी ? तो उन्होंने जवाब दिया मैंने सत्याग्रह में भाग लिया इसलिए व्यवस्थापकों ने मुझे निकाल दिया बाबा साहब ने तुरंत उनको अपने यहाँ रख लिया क्योंकि वो ऐसे ही अध्यापक चाहते थे कि समाज के लिए जूझने वाले हो ऐसा समाज तैयार करने वाले हो
        समरसता का उल्लेख संविधान मे कैसे दिखतेहैं संविधान के प्रीयेम्बलमें लिखा है " वी पीपल ऑफ़ इंडिया " , पीपल जाने की जिनकी आज आकांक्षा समान है और राज्यमे अधिकार समान हैं ऐसे लोग जो एक भूमि पर रहते है। community से people  और पीपल से nation बनाने का एक रास्ता है , यानी कि सबकी समरसता सोची गई है
      सामाजिक समरसता के लिए काम करने वालों के लिए एक बहुत बड़ा अच्छा उदाहरण है जिसकी निर्मिति उसने की है , उनकी रक्षा करनी चाहिए छोटी सी अहल्याबाइ ने खेल खेलने के लीए बनायी छोटी शिवलिंग की रक्षा के लिए धूळ उन पर अपना शरीर ढेर दीया जब जोड़ता हुआ घोड़ा वहाँ से नीकला और अन्य लोग उन्हें दूर जाननेको कह रहे थे। भय और अपनी रक्षा को छोड़के  शिवलिंग रक्षा की "क्योंकि उनकी माँ का कहना था हमने जिसकी निर्मित की उनकी रक्षा करनी चाहीए। वो आगे जाकर पेशवा परिवार में आकर महारानी बनी और देवी अहल्याबाइ कहलाइ
      हमारा संविधान भी पोलिटिकल डॉक्यूमेंट नहीं है सोसीयल डॉक्यूमेंट हैं , यानी कि समाज के लिए समाज को जोड़ने के लिए हैं , सिर्फ़ समाज को चलाने के लिए नहीं। समरसता के लिए है। 
     25 Nov 1949 की संविधान सभा में अंतिम भाषण में डॉक्टर बाबासाहेब ने कहा था कि हम  ने लिबर्टी Liberty और  Equality चाहीए  और डेमोक्रेसी तभी रहेगी जब बंधुता हो। संविधान में लिबर्टी और इक्वालिटी की बात है व्याख्या है आर्टिकल है लेकिन बंधुता का कोई आर्टिकल नहीं है क्यों की यह एक भाव है और मानसिकता है। बाबा साहब ने कहा था लिबर्टी और इक्वालिटी और बंधुता मैंने फ़्रांस के संविधान से नहीं लेकिन तथागत भगवान बुद्ध की संदेश से ली है
    Freedom and equality only possibke when there is a fraternity . 
    बंधुता के लिए मैत्री , करुणा मुदीताऔर उपेक्षा चाहिए। 
   मैत्री याने की ज़रूरत वाले को मदद करने के लिए तैयार, पर होना यानी दूसरे के दुख को देख  कर अपना हाथ बढ़ाने के लिए तैयार। मुदीता यानी की दूसरी का उत्कर्ष देखकर आनंदित होना और उपेक्षा यह है कि बुरी चीज़ों से दूर रहना यही सामाजिक समरसता का रास्ता है  
       उन्होंने caste in India महान निबंध में कहा है कि हमारे देश में  Cultural Unit है और Social concept  , पोलीटीकल नही
       Social concept. Means जब देश पर कोई समस्या आती है और अब विवि क्या होता है तो सब लोगों का एक सरीखा प्रतिभाव रहता है। उदा. पुलवामा का हैमलेट के बाद देश मे प्रतिभाव  
     बाबा साहब मानते थे समाज की एकात्मकताएक रहने से और निर्दोष बनने से सामाजिक समरसता निर्माण  होती है
    समरसता के लिए हरहंमेश जगना पड़ता है। एक बार अमेरिका के पत्रकार दिल्ली में आए और स्वतंत्रता आंदोलन में रहे तीन एडवोकेटस को मिलना चाहा गांधीजी , मोहम्मद अली जिन्ना और डो बाबासाहेब अंबेडकर देर रात हो गयी थी गांधीजी को मिलने गए तो वो मौन और थके हुए थे , बात नहीं कर सके। मोहम्मद अली जिन्ना भी सोने के लिए चले गये थे देर रात के समय डो अांबेडकरजी  ही मिल गये और देर रात तक उनके साथ बात हुई और पत्रकारों ने भी पूछा कि आप देर रात तक जगते हो क्याउन्होंने कहा महात्मा गांधी जी और जीन्हा जो प्रभावी समाज का नेतृत्व करते हे सब लोग समझते हैं , जागृत है इसलिए दोनों नेता जल्दी सो सकते है मैं इनका नेतृत्व करता हूँ उस समाज जागृत  नहीं है , सोया हुआ है ,?इसलिए मुझे देर तक जगना पड़ता है। 
    
      सामाजिक समरसतासमाज और शिक्षण विषय की पसंदगी आज के समय की ज़रूरत है सामाजिक समरसता से ही देश का विकास और उनके लिए प्रयास ज़रूरी है सामाजिक समरसता के लिए सामाजिक आंदोलन ज़रूरी है संविधान में भी प्रावधान है। लेकिन समाज के अपने प्रयत्नों से यह ज़्यादा संभव होता है
     सामाजिक समरसता बोहोत चिर पुरातन विषय हैं लेकिन उनकी बार बार पुनः स्वीकृति तो है आज के समय में अधिक अप्रासंगिक है डॉक्टर बाबासाहब अंबेडकर कहते थे कि मुझे समता स्वतंत्रता और बंधुता चाहिए तथागत भगवान बुद्ध की प्रेरणा से लेकर कहा है समता आती है स्वतंत्रता  मुश्किल हो जाती और स्वतंत्रता रखने के लिए समता मुश्किल हो जाती है समता और स्वतंत्रता दोनों को साथ साथ रहना बंधुता के सिवा संभव नही
      सामाजिक समरसता है समाज में निर्मित तो इसलिए क्या क्या हो सकता है
संविधान में प्रावधान
प्रावधानों का अमल
सामाजिक कार्यकर्ता और महापुरुषको कार्य
संतों का योगदान
सामाजिक संस्थाओं का कार्य
शिक्षा संस्थाओं का कार्य
     सबसे चिंता की बात है और वर्तमान राजनीति और राजनेता यह कार्य में बोहोत बाधा है। कई बार देखने को मिलते हैं उनकी स्वार्थ और वोट बैंक की राजनीति इस पे रोक लगा दी है।
          आज यहाँ शिक्षा संस्थान में एकत्रित हुए हैं तो हम ये सोचे की शिक्षा संस्थान का ,विश्वविद्यालय का ,यहाँ के व्यवस्थापक और अधिकारी गणका ,अध्यापकोका, पाठ्यक्रमों का मूल्यांकन हो और विद्यार्थियोकी प्रवृतिओका इसमें क्या रोल रहेना चाहिए 
       समाज में समरसता के अभाव में दिख रहे भेदभाव के प्रसंग तो बोहोत दिखने मिलते हैं मीडिया TV न्यूज़ और आजकल सोशल मीडिया में भी बहुत दिखता है समाज को तोड़ने वाले तत्वों इसको बढ़ा चढ़ाकर की भी दिखाते हैं लेकिन जो प्रेरणादायी है समरसता में उपयोगी है समरसता के प्रतीक हैं ऐसी चीज़ें बहुत कम देखने को मिलती है।उनकी ज़्यादा लोगों की जानकारी में आएँ ये ज़रूरी है।
     सबमे एक ही आत्मा देखना यह हमारे देश के तत्वावधान मे है। बहुत से उदाहरण है जैसे नामदेव ने कुत्ते को सिर्फ़ रोटी नही घी भी चाहीए यह समझकर रोटी लेकर भाग रहे कूते के पीछे घी का बरतन लेकर दौड़े। सन् एक अनाथ नहीं राम इस वर्ग के लिए लिया हुआ गंगाजल रास्ते में पानी की वजह से मर रहे वृद्धि को पिला दिया। रामकृष्ण परमहंस एक दिन अपने एक सफ़ाई कर्मचारी के घर जाकर अपने बालों से उनका साफ किया।
कबीर हो या नरसिह मेहता, रविदास और नारायण गुरु , स्वामी विवेकानन्, रामकृष्ण परमहंस ,नानक देव जी महाराज ,जलाराम बापा ,संत कबीर रामानुजाचार्य , गांधी जी ,डॉक्टर हेडगेवार , परी गुरुजी सभी ने इस दिशा में बहुत कुछ किया इतना ही नहीं अपने आप से कुछ उदाहरण रखे हम सबने ये सुना है लेकिन आज के समय में क्या ये संभव है, हम सोचते है। 
     राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयंसेवकों के प्रयत्नों से गुरुवायुर मंदिर दर्शन करने के लिए जा रहे दलितों के लिए रास्ते में सेवा केन्द्र  खड़े किए गए।जो कालाराम मंदिर में प्रवेश के लिए डॉक्टर बाबासाहब तो आंदोलन करना पड़ा था वहीं मंदिर में पंडितों के साथ बातचीत करके दलितों को मंदिर प्रवेश , पूजा प्रसाद ग्रहण पुजारी के वंशजों ने किया दलित संतों के प्रवास में अन्य वर्णके घरो में उनका गृह प्रवेश कीया गया। दलितों को पूजा की  पद्धति सिखाने का कार्यक्रम भी तमिलनाडु में हुआ है और यह सब देखकर नामदेव ढसाल ने दिल्ली में कहा कि सामाजिक समरसता के लिए हमें संघ से बड़ी अपेक्षा है। 
   महात्मा गांधी की ने भी यही बात स्वीकार किया कि जब हम समाज को समरस बनाना चाहते हैं तो छोटे छोटे भेदभाव से ऊपर उठकर हम सबको एकत्रित करने वाला कोई बडा छत्र पकड़ना चाहिए डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर भी इन बात से सहमत थे लेकिन वो कहते थे मुझे ऐसे काम में बहुत से जल्दी करना है दीनदयाल जी कहते थे खड्डेमें पड़े हुए व्यक्ति को ऊपर उठाना है ऊपर वाले को हाथ नीचे देना पड़ेगा और नीचे वाले को हाथ ऊपर उठाना पड़ेगा
     आज मैं ऐसे कुछ प्रसंग सुनाकर मेरी बात करूँगा कड़ी के केशुभाइ करके एक शिक्षक ने अपने धर मे दलित बंधु और नये नियुक्त हुए प्युन को रखा , जीसे किराये का घर नही मील रहा था। वीजापुर के संघचालक डो सुभाषभाइ दवे के घर संघ कार्य प्रवास में जाना हुआ दोपहर के भोजन के समय उनकी अस्पताल के कंपाउंडर के घर ले गए उनके साथ भोजन और सौराष्ट्र से आए हुए अतिथियों के लिए छाछ का इंतज़ाम करने के लिए दौड़े प्रेम और लावणी  का माहौल खड़ा किया। ऐसे समरसता बनती है।
       डॉक्टर अम्बेडकर के जीवन मे भेदभाव के प्रसंग तो काफ़ी कुछ प्रचलित है जिसे महाडके तालाब का पाणी का सत्याग्रह , नासिक के कालाराम मंदिर का प्रवेश का  सत्याग्रह ,बड़ौदा मे रहने के लिए मकान और मुम्बई में नौकरीमे भेदभाव
      हमें समाज में समता समानता चाहिए लेकिन क्या सिर्फ नियम से ,संविधान से ,कुछ क़ानून से या कुछ आरक्षण से ही संभव है क्या ? नहीं बहार का वातावरण  समरसता खड़ी नही कर सकता। आंतरिक फ़ालसे होनी जरुरी है। 
    समरसता के लिए प्रेम चाहिए ,करुणा ,आत्मीयता अंगागी भाव और आध्यात्मिकता चाहीए। आत्म वत सर्वे भूतेषु।
        रामकृष्ण मिशन के ही एक संत का अमेरिका में इंटरव्यू था पत्रकार ने पूछा :संपर्क और जुड़ाव मे क्या फ़र्क़ है ? इसमें क्या होता है ? संत ने तब उसने पूछा
आपके परिवार में कौन है ? आपके पिताजी को आप कब मिले? और साथ में कौन कौन थे ? कितने घंटे साथ रहे ? आप साथ में बैठे ? खाना खाया ? कितने घंटे तक साथ रहे ? वग़ैरह वग़ैरह
        पत्रकार की आँख में आँसू गये स्वामी जी ने कहा कि आपके पिता के साथ अपने संपर्क है लेकिन जुड़ना ही नहीं उनसे जुड़ना , साथ बैठना ,एक दूसरे का ख़याल रखना ,हाथ मिलाना ,हाथ में हाथ मिलाना आत्मीयता यह जुड़ाव है। जुड़ाव ही समरसता है।
      हमारे देश में समाज में एक दूसरे के साथ भाईचारे की बात चलती है ,समरसता की बात चलती है लेकिन संपर्क हैं किन्तु जुड़ाव , जितनी मात्रा में चाहिए इतना नहीं है यानी की समरसता की ज़्यादा अभी भी ज़रूरत है।
         डॉक्टर बाबासाहब के मतानुसार बंधुत्व का मूल्य हैं जब हम समाज का परिवर्तन और भारत का नवनिर्माण करना चाहते हैं तो हमारे समाज में समरसता चाहिए है ,वो कब आएँगी? जब स्वतंत्रता और समानता के साथ बंधुता हो। 
       डॉक्टर बाबा साहेब के समय भी ऐसा समय था कि उनको अपने आप ख़ुद सब संघर्ष करना पड़ा समाजको जैसा चाहिए पैसा बनाना पड़ा आज तो हमारे पास संविधान है ,नियम है ,क़ानून है ,सद्भावना है राजनीतिक लोग साथ में आने का तैयारी बता रहे थे लेकिन जब तक पूरा समाज में यह मन का भाव नहीं आएगा तब तक उसमें संपूर्ण सफलता मिलने का कुछ नहीं कह सकते हैं फिर भी डॉक्टर बाबासाहब और भगवान बुद्ध का कहा याद रखना चाहिए "आत्मा दिपो भव"
        मिलिंद महाविद्यालय में डॉक्टर बाबासाहब ने एक बार बात बतायी उन्होंने कहा तथागत बुद्ध के पास एक आदमी आया और बोला क्यु,?आप सबको ज्ञान सिखाते हैं सब लोग विद्या के अधिकारी नहीं है तब भगवान बुद्ध का जवाब था जैसे सब मनुष्यों अन्न की ज़रूरत है वैसे ही सब को भी ज्ञान की ज़रूरत है
         बाबा साहब का मानना था शिक्षा ही सभ्यता और संस्कृति का आधार है समाज परिवर्तन की प्रक्रिया ठीक करो मनुष्य में रही सुस्षुप्त रही शक्ति को जगाने के लिए , मानवता की ओर ले जाने के लिए व्यक्ति को सामाजिकता प्राप्त करने के लिए , नैतिकता  के लिए , गति को बढ़ाने के लिए शिक्षा की ज़रूरत है  
     शिक्षक :पढे और पढ़ाए समाज की भी समस्या को दूर करना है और समरसता समाज मे निर्माण हो और समाज समता मूलक हो, इसके लिए शिक्षा सबसे बड़ा आवश्यक साधन है।
    शिक्षा यानी विद्या :सिंह का दूध है वो नया उत्साह स्फूर्ति देती है हमारे तीन उपासक देवो में विद्या  का स्थान प्रथम है शिक्षा यानी परीक्षा में सफल होना और डिग्री मिलना इतना काफ़ी नहीं विद्यार्थी को भार वहन करने वाला नहीं , ज्ञान वहन करने वाला बनना पड़ेगा। शिक्षा से जब मन को दृष्टी , विचार सकती और समस्याओं के निवारण की शक्ति बढ़ती है विनय शीलऔर अनुशासन का आत्मा साथ होता है तो अपने आप समरसता आने की शुरुआत होती है। 
    जब शिक्षा में विद्या , विद्या के साथ समझशकति करुणा भरी शील , अच्छा और मैत्री भाव बढ़ता है तो चारित्र का निर्माण होता है और इसके साथ ही समरसता संभव है। 
       सामाजिक समरसता के लिए समाज हित तथा कथित पिछड़ी जातिको आर्थिक और सामाजिक आगे आने के लिए शिक्षा की ज़रूरी है वैसे ही अन्य मददगार जैसे की पुस्तकालय ,,वाचनालयशिक्षक वर्ग स्वाध्याय मंडल इनकी भी इतनी ज़रूरत है बार बार बाबा साहब कहा करते हुए बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना के पीछे भी यही उद्देश्य था
      शिक्षा के लिए भेजकर उनसे सिर्फ़ बाहरी ज्ञान ही आये यह हम नही चाहते, इसमें सिर्फ इंफॉर्मेशन यानी माहिती ही नहीं , आर्थिक और सामाजिक उत्थान हो इसके लिए विश्वविद्यालय को तैयार होना पड़ेगा और सिर्फ़ पाठ्यपुस्तक होते हुए भी प्रायोगिक वर्कशॉप समाज मे बनाया जाये यह भी उतना ही ज़रूरी है
      डॉक्टर बाबासाहेब का मानना था शिक्षा का कार्यक्षेत्र सामाजिक रहना चाहिए अगर शिक्षा से सामाजिक समरसता लानी है तो कहीं प्रायोगिक व्यावहारिक और अनुभवजन्य चीज़ें समाज में जाकर ही मिलेगी
      शिक्षक भी कई से चाहिए कि उन्हें शिक्षा का दान देना है वो पुराना अनुभवी उत्कंठा वाले और कठोर परिश्रम के मालिक चाहिए विद्यार्थियों के साथ घुल मिल जाने की रीत के धनीचाहिए अनुभवजन्य चाहिए और ख़ुद को भी सामाजिक समरसता के लिए मन में दृढ़ संकल्प चाहिए शिक्षक या अध्यापक राष्ट्र के सच्चे अर्थ में सारथी है विद्यालय तीर्थ स्थान है। अध्यापक के पास त्रिसूत्री चाहिए  वांचन , मनन और चिन्तन। 
      विद्यार्थियों के लिए क्या कुछ पढ़ाई करनी है तो कुछ  चीज़ें ही आवश्यक है क्या था डॉक्टर बाबासाहब  पास ? ख़ुद की १२/१२ की छोटे कक्ष  में दस लोगों के साथ ही ,छोटे लेम्प  के प्रकाश में पढे और कितनी सारी डिग्री हासिल की क्रिया सिद्धि सत्वे भवती,महत्ताम नोपकरणे। 
     सामाजिक समरसता के लिए ज्ञान ज़रूरी है लेकिन शिक्षा के माध्यम से मिलेगा  ,तलवार जैसी शिक्षा देना चाहिए क्योंकि तलवार अकेले किसी की गला काटने के लिए नहीं है वह दूसरे किसी की रक्षा भी कर सकेगी 
चरित्र का निर्माण विद्या प्रज्ञा करुणा शील, और मित्रता के आधार पर होता है
       सफल लोकतंत्र की पूर्व शर्त है कि समता अधिष्ठित और मूल्य  अधिष्ठित और नीति मान समाज रचना हो और यह सामाजिक समरसता के बिना संभव नहीं यहाँ संस्कार शिक्षा से ही संभव है।
     बाबा साहब का कहना था उनके तीन गुरु है तथागत भगवान बुद्ध , संत कबीर , ज्योतिबा फूले और वो कहते थे मेरे लिए तीन देवता है विद्या स्वाभिमान और शील  
      जो समाज में कार्य कर रही है वो क्या कर सकते है उसके कुछ उदाहरण :जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी द्वितीय सरसंघचालक गुरु जी की जन्म शताब्दी वर्ष का थीम ही समरसता रखा समरसता के लिए डॉक्टर हेडगेवार का जन्मशताब्दी के समय सेवा विभाग शरु कीया संघ ने अपनी समरसता की गतिविधि भी बनायी है और ऐसे कार्यकर्ताओं द्वारा समरसता मंच का भी निर्माण किया है
      समरसता वालीसाहित्य का निर्माण हो और वैसे उनकी गोष्ठी भी हो ये भी ज़रूरी
       समरसता के लिए हिंदुत्व की प्राण तत्व का जीवन में आचरण ज़रूरी है इसलिए हम विवेकानंद की लाहौर में बताएँगे वो प्रवचन भी शब्द याद रखें और अपने जीवन में उनका व्यवहार करें।
    Mark me, then and then alone you are a Hindu when the very name sends through you a galvanic shock of strength. Then and then alone you are a Hindu when every man who bears the name, from any country, speaking our language or any other language, becomes at once the nearest and the dearest to you. Then and then alone you are a Hindu when the distress of anyone bearing that name comes to your heart and makes you feel as if your own son were in distress. Then and then alone you are a Hindu when you will be ready to bear everything for them, like the great example I have quoted at the beginning of this lecture, of your great Guru Govind Singh

     शिक्षा के पाठ्यक्रमों में समरसता का विषय हो विद्यार्थियों को समरसता की कुछ अनुभव देखने सुनने और करने मिले का व्यावहारिक प्रयोग समाज की संवेदना का अनुभव प्रायोगिक वर्कशॉप और पाठ्यक्रमों का भी ऐसा निर्माण।
    पाठ्यक्रम में समरसता के लिए हुई कार्यों की कुछ जानकार क्या है जैसे डॉक्टर कृष्ण गोपाल जी ने लिखा हुआ है "सामाजिक समरसता और संत परंपरा "संतों ने कैसे समरसता लाने के लिए काम किया पूरे भारत में संतों का वर्णन है ऐसे कुछ पाठ्यपुस्तक निर्माण हो सकते हैं।
     समाज के विभिन्न वर्गों में विद्यार्थियों का जाना हो और वहाँ ठहरना हो। और अनुभव करना भूज के मेडिकल कॉलेज के छात्रों का ऐसा छोटा सा कार्यक्रम किया गया था जिनका बहुत अच्छा परिणाम देखने को मिला। 
     संत महात्मा कथा का प्रवचन का विषय हो और समाज के दलित वर्ग को बार-बार मिलना होगा ऐसे लोगों को बार बार मिलना शिक्षा संस्थाओं में उनका आना और समाज में उनका जाना इस समरसता के लिए बहुत उपयोगी है।
     शिक्षा में जैसे व्यक्ति का विकास चाहिए अंतर्मुख विकास भी चाहिए और बहिर्मुखी विकास भी चाहिए अंतर्मुख में आत्मकेन्द्रित स्वार्थ भिन्नता और अन्य सुख और संतोष होते हैं लेकिन बहिर्मुखी विकास समाज के साथ ही समरस होने से संभव है और संवेदना से होता है
एक बार सेवा प्रशिक्षण वर्ग के एक ट्रेनिंग कैंप में एक प्रज्ञाचक्षु लड़की थी किसी ने पूछा आप देखती नही फीर सेवा कैसे करेगी ? तब उनका जवाब था मेरे पास आँख नहीं अश्रु ज़रूर है। 
    शिक्षा में समर्पण भाव हो। निरपेक्ष हो और प्रतिष्ठा के लिए नहीं लेकिन समाज ही मेरा सब कुछ है यहाँ पर समरसता करने का प्रयास होना चाहिए।
    देखने से ही संवेदना उत्पन्न होती है एक बार टीम के कुछ लोग झोपड़पट्टी एरिया में खो गई और दिखा छोटी बच्ची को स्किन रोग है, सलाह दी रोज़ नहाना चाहिए लेकिन पानी जब आता  है तब माता पिता घर पे नहीं होती है और घर में कोई बड़ा बर्तन नहीं ,यहाँ पानी ला सकते हैं जो स्किन का रोग का कारण साधनों का अभाव है। 
     दयानंद सरस्वती ने एक बार एक ग़रीब महिलाओं को अपने मृत बालक को नदी में बहाव के समय देखा बालक चलाए जाने के बाद उनका सफ़ेद वस्त्र वापिस ले लिया जब उनके दिल में संवेदना जग उठी क्योंकि वो इतनी ग़रीब थी वस्त्रों की उन्हें ज़रूरत थी
    सामाजिक समरसता का दायरा सिर्फ़ हमारे समाज में  नही पूरे विश्व में मानवता के लिए ज़रूरी है भारत में से विदेश में गए हुए कई लोगों ने ये समरसता का उदाहरण वहाँ भी प्रस्तुत किया है जैसे हिंदू काउंसिल ऑफ़ अाफ्रीका और हिन्दू स्वयंसेवक  संघ, सेवा इंटरनेशनल।
      मैं व्यक्ति मिटकर बनु विश्व मानव :यही हमारे देश की और संस्कृति की सोच है। 
    Charity begins at home let's . And charity begins by self 
हिन्दु पत्तों भवेत 
हिन्दवा सोदरा सर्वे 
समाज ही मेरा भगवान है

(Seminar at BAOU Ahmedabad on 14.4.19)