Thursday, June 20, 2019

Inaugural Function of workshop of Granth “ Yasholata” written by Muni Bhagavant Shri Bhaktiyash Vijayji maharaj






Indian Council of philosophical research , सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी और दिव्य दर्शन ट्रस्ट द्वारा आयोजित 'यशोलता 'नाम के ग्रंथ जो ' गूढ़ार्थ तत्वलोक' नामका सबसे बडा 'तर्कविद्या' विषय के ग्रंथ, उन पर लिखा गया विश्लेषणात्मक ग्रंथ -पर हो रहे कार्यशाला के उदघाटन मे उपस्थित रहने सौभाग्य मुझे मिला ,इसके लिए मैं बोहोत आनंदित हु।
    आचार्य भगवंत श्री यशोविजय सूरीश्वर महाराज के शिष्य मुनिराज श्री भक्तियश विजयजी महाराज ने गूढ़ार्थ तत्वलोक नामके ग्रंथ का विश्लेषण करके यह कार्य कीया है। मूल ग्रंथ    गूढ़ार्थ तत्वलोक जो सर्वतंत्र स्वतंत्र  श्री धर्मदत झा ने लीखा है। यह तर्कशास्त्र का व्याख्या करने वाला सबसे बडा ग्रंथ है।
        दुनिया में सबसे पुरानी विरासत हमारे देश की है थॉमस आलवा एडिसन ने जब अपनी आवाज़ मुद्रित हो सके इसके लिए जो रिकॉर्डिंग यंत्र बनाया , वहा उन्होंने सबसे पहले आवाज़ देने के लिए मैक्स मूलर के पास गए और मैक्समूलर ने " अग्नि मीलें पूरोहितम" श्लोक कहा जो दुनिया की सबसे पुरानी ग्रंथ " रुगवेद" से है हमारे देश का ज्ञान वैभव और संस्कृत भाषा सबसे पुराना है तो विदेशियों को भी आकर्षित करता है।
       यशोलता पुस्तक में 90 हज़ार श्लोक  हैं 5500 पूष्ठ हैं और १४ भाग है।                                                 
    आज यहाँ यह कार्यशाला में सब विद्वत लोग आए हैं यह हमारे लिए आनंद की बात है। सबका स्वागत ,अभिनंदन और साधुवाद।
       संस्कृत देव भाषा है और अनेक भाषाओं की जननी है। यह भाषा में सभी चीजे हकारात्मक है , कोई नकारात्मक नहीं संस्कृत में सभी इंक्लूसिव है कोई भी एक्सक्लूसिव नहीं है। यशोलता ग्रंथ की कंइ विद्वानोने भूरी भूरी प्रशंसा की है यह ग्रंथ विद्या के क्षेत्र में चमत्कार है।
       जब हमारे देश की विरासत की बात आती है तो हमारा अपने लोग ही मानने को तैयार नही होते। डॉक्टर अब्दुल कलाम अपने मित्र वास. एस.राजन के साथ एक पुस्तक लिखी है India 2020 vision for new millennium वो बताते हैं भारत महा शक्ति है लेकिन इसके लिए अपनी बातों पर ,अपने इतिहास पर ,अपने लोगो को गौरव होना चाहिए एक बार बता रहे थे की अपने कक्ष में एक मित्र आए और उन्होंने जब कक्ष की दिवार पर लगे हुए कैलेंडर दिखा तो उनकी प्रिंटिंग जो जर्मनी में हुई थी तो,वो प्रशंसा करने लगे लेकिन जब अब्दुल कलाम ने बताया कि यह प्रिंटिंग का जो फोटो है वो भारत के उपग्रह ने लिया हुआ है अब वो आश्चर्यचकित हो गए और संदेह के साथ मानने के लिए तैयार हुए।  
         एक बार एक कॉन्फ़्रेन्स के समय रात्रि भोजन में कई वैज्ञानिक मित्रों के साथ बात करते समय उन्होंने कहा कि लड़ाई में उपयोग होने वाले रॉकेट का आविष्कार भारत ने किया था और सबसे पहले टीपू सुल्तान ने ब्रीटीश के युद्ध मे उनका उपयोग किया था यही बात उन्होंने लंदन के पास ब्रुलिज के रोटुण्डा म्यूज़ियम में देखा।जो भारत के युद्ध में से मिले हुए थे। भारत के वैज्ञानिकों अब्दुल कलाम के विषय में सहमत नहीं हूए। लेकिन दूसरे दिन का डो  कलाम लाइब्रेरी में से सर बर्नार्ड लोवेल का पुस्तक The origin and international economic's of space exploration इसमें लिखा गया था ब्रिटिश ने टीपु सुल्तान के युद्ध के समय के बचे रोकेट  के अवशेष  विलियम  कोनग्लेव पास लाये ओर अपने अभ्यास से नये रॉकेट बनाया जो विलियम पीट ने १८०५ मे युद्ध के लीए मंजूर कीया ओर १८०६ में  नेपोलियन के साथ युद्ध मे उनका उपयोग हुआ ऐसा सुनने के बाद सब 
सब लोग सहमत हुए। 
    पोकोक ने पुस्तक लिखा है India in Greece  यह बताया है कि बाक़ी के देशों में जो फ़्रेम उनकी की है लेकिन अंदर का ज्ञान जो है भारत का है। प्रख्यात वैज्ञानिक प्रफुलच्द्र रोय जो इंग्लैंड में केमेस्ट्री के उच्च  अभ्यास करने गए थे लेकिन जब उन्हें कहा गया था कि अपने देश का विज्ञानका गर्व है तो बताये ,तब उन्होंने अपने पुराने ग्रंथों में से कैमिस्ट्री का ज्ञान  इकट्ठा करके पुस्तक लीखा Hindu chemistry . 
यह कार्यशाला से ऐसे ज्ञान की अच्छी चर्चा के बाद नया मक्खन निकले यह अपेक्षा के साथ शुभकामना