Sunday, September 9, 2018

डगायचा दादा।




कच्छ से आगे की राह पर राधनपुर के रास्ते में पीपरालाव नाम का एक गाँव है वहाँ के मुख्य मार्ग के पास एक धार्मिक स्थान है उसका नाम है डगायचा दादा। 


      ऐसा कहा जाता है कि राजा सिद्धराज जयसिंह एक बार शंकर भगवान का मंदिर बना रहा था ब्राह्मणों ने बताए हुए स्थान और रखे हुए लोहे का संकेत मज़दूरों से हट गया नए बनने वाले मंदिर के पर कलश  रखा जाना असंभव हुआ। बार बार मेहनत करने पर भी वो टिकता नहीं था फिर ब्राह्मणों ने कहा कि अगर कोई 32 लक्षण वाले महापुरुष इसे रखें तो वो रह सकता है। 

     राजा के कहने पर राज्य का कवि - गढवी , ऐसे व्यक्ति को ढूंढने के लिए कच्छ में गए वहाँ तृणा नाम के एक गाँव में ऐसे 1 व्यक्ति से मुलाक़ात हुई उनकी परीक्षा के लिए कवि ने एक नदी के पानी के बीच खड़े हुए वह व्यक्ति से धोती का दान माँगा।उनके देवत्व के कारण भगवान ने उन से धोती दिलवायी ऐसे सद्गुणी व्यक्ति मंदिर शिखर के कलश के ले जाने के लिए कवि तैयार हुए। पाटण जाते हुए रास्ते में पीपराला नाम के गाँव के पास , गाँव की गायों को लूंटके ले जाने वाले मुस्लिमों के साथ , वह व्यक्ति जिसे का नाम डगायचा दादा था , उन्होंने संघर्ष किया चोर लुटेरे भाग गए लेकिन वो ख़ुद इजाग्रस्त हो गए। मंदिर के लिए वहा तक पहुँचना असंभव था मंदिर के शिखर पर कलश  लगाने के लिए उसने अपना एक हाथ काट के कवि को दे दिया और कहा कि यहाँ हाथ की वजह से वो काम हो जायेगा। 

    और डगायचा दादा ने  , वहाँ ही अपना शरीर से आत्मा अलग कर दिया और उनका स्मृति स्थान बना हुआ है डांगर परिवार की आहीर लोगों के लिए वो पवित्र और प्रेरणादायी स्थान है छोटी सी गौशाला भी है यात्री लोग के लिए भोजन और रहने का प्रबंध भी है।

ऐसे प्रेरणादायी और प्राकृतिक स्थान पर सीमा जागरण के लिए काम करने वाली सीमा जनकल्याण समिति की बैठक हुई भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो यहाँ कच्छ का बड़ा और छोटा दोनो रेगिस्तान पास पास है थोड़े से अंतर पर अपने पड़ोसी देशपाकिस्तान की सीमा है यह छोटा प्राकृतिक स्थान सिर्फ़ मुसाफ़िरों के लिए लेकिन कई धार्मिक बंधु भगिनी के लिए ही प्रेरणा देने वाला है। 

गायों की रक्षा करना है , आये हए अतिथी की माँग पूरी करना और मंदिर जैसे अच्छे कार्य के लिए अपना शरीर भी न्योछावर कर ना , ऐसे दधीचि , शिबि राजा जैसे अनेक महापुरुष हमारे देश में हुए हैं ऐसी कथाएं समाज को अन्य की मदद के लिए हमें अवगत कराते हैं डगायचा दादा की जय  























Saturday, September 8, 2018

Jadeshvar temple


વાંકાનેર નજદીક રતન ટેકરી પર જડેશ્વર મહાદેવ નું મંદિર એટલે વર્ષોથી વાકનેર અને મોરબીના લોકો માટે દર્શનીય સ્થાન . અમે નાનપણ થી અવાર નવાર અહીં આવતા. મારા બાપુજીએ તો આ મંદિર ના ભોજનશાળા ના બાંધકામ વખતે ત્યાં ૬ મહિના રોકાયેલા. અમે વાંકાનેર થી ચાલીને જતા. રસ્તામાં વડસર ના તળાવ નો નજીયારો ચોમાસા બાદ જોવા જેવો. શ્રાવણ મહિનામાં લાડુ નો પ્રસાદ અને બ્રાહ્મણ દેવતાઓની નિવાસી પૂજા હજુ અવિરત ચાલુ છે. પૂજારીઓમાં સૌથી જૂના માહેના એક પંડયાજી હજુ એવા જ પ્રેમ થી બધાને આવકારે. મારા બાપુજીને દાદા ના દર્શન માટે તીવ્ર ઇચ્છા રહેતી . મોટી ઉંમરે , એક વખત રસ્તો ટ્રાફીક જામ હોવાથી પગથીયા ચડીને પણ દર્શને ગયેલા 

જય મહાદેવ 










Wednesday, September 5, 2018

Hadmatiya village



Sent from my iPhoneमोरबी के पास हडमतीया नाम का गांव है । मोरबी की महावीर प्रभात शाखा के स्वंयसेवक १ सपटेमबर रांझा छठ के दिन गए थे।
वह गाँव की शाखा और ये प्रभात शाखा के साथ में मिलकर संघ शाखा में खेलों खेले।
छोटा गाँव लेकिन सुंदर गाँव , अच्छी साख , युवा कार्यकर्ता भी । शाखा के बाद गाँव की हर एक व्यक्ति के घर चाय के लिए गए है ।

Saturday, September 1, 2018

Pravinkaka







સદગત્ પ્રવીણકાકા ના જન્મ દિવસે ( ૧ સપ્ટે)શત શત પ્રણામ
તેમના વિષે કહીએ તો " પ્રવીણકાકા એટલે પ્રવીણકાકા" બસ એમાં બધુ આવી જાય
પ્રવિણકાકા હોય ત્યાં વાતાવરણ ધમધમતું હોય. શાખા વિષના તેમના દુહાઓ વાતાવરણ ને ગજવે . અનેક ઝંઝાવાતો વચ્ચે અડીખમ ઉભા રહેનારા કાકા. મોરબી તો તેમના માટે ઘર જેવું . સંઘ ની સક્રિય જવાબદારી માથી મુક્ત થયા બાદ બધી અખિલ ભારતીય બેઠકોમાં ,બધા કાકા ને સંભારે. પૂર પછી મોરબીને બેઠું કરવામાં , ધરતીકંપ બાદ સેવાભારતી દ્વારા ગામો અને શાળાઓના પુન:નિર્માણ કે વાવાઝોડા બાદ નળિયા ના વિતરણ મા તેમની અનોખી જહેમત . જનસંઘ અને પછી ભાજપ સહિત વિવિધ ક્ષેત્રો ને આગળ વધારનાર અડગવીર હતા. શિક્ષણ ના વિકાસ નો રસ તો રગેરગમા ભરેલ. તેમની સાથે છેલ્લો પ્રવાસ રત્નાગીરી પાસે દેવગઢ ના સહકારી ખેડુત મંડળી ના એક પ્રકલ્પ માટે ગયા. શરીર સાથ ન આપે તો પણ વિમાનથી પણ પ્રવાસ કર્યો . બધા કુટુંબીજનો ની પૂછપરછ કરે અને ધ્યાન પણ રાખે. તેમની સાથે હોય તો સીંગ ચણા રેવડી નાસ્તા તો હાજરા હજૂર. આ બધા દેશ ભકિત ના સંસ્કાર પરિવાર જનો પણ નિભાવે છે. વંદન પ્રણામ સૌને

Thursday, August 30, 2018

સ્વ. સંજય જમનભાઇ હીરાણી ને શાબ્દિક શ્રદ્ધાંજલી

મોરબી ના અગ્રગણ્ય સમાજસેવક અને સદ્દભાવના પરિવાર દ્વારા સદ્દભાવના ટ્રસ્ટ ની હોસ્પીટલ ના સ્થાપક ટ્રસ્ટી જમનભાઇ હીરાણી ના પુત્ર સંજયભાઇ આ ફાની દુનિયા છોડી પ્રભુ ના દરબાર મા પહોંચી ગયા.
બચપણથી જ સેવા અને ભગવાન ની ભકતિ નો વારસો મળેલો. શરુઆતની સદ્દભાવના પરિવાર ની રામને ભજી લો- ધૂન મંડળ ના કલાકાર ભક્ત તો ખરાજ. પ્રફુલ્લ ભાઇ મિસ્ત્રી ની સાથે ઢોલક વગાડવાના જોડીદાર હતા. કલાકાર સાથે સેવા કરવાની અને સંગીત નો સામાન લઇ જવા મૂકવાનું બધુ કામ કરે. અમે સદ્દભાવના હોસ્પીટલ ની ડો તખ્તસિંહજી રોડ પર શરુઆત કરેલ ત્યારે હોસ્પીટલ મા બધા કામ મા હાજરા હજૂર હોય. એક વખત ઓપરેશન મા મદદ કરનાર મદદનીશ નહોતો ત્યારે ગાઉન પહેરી એ ફરજ પણ નિભાવી .
સંઘના સ્વયંસેવક નો વારસો જમનભાઇ એ આપેલ. જડેશ્વર પ્રભાત શાખા મા આવે. બધાની સાથે મળતાવડો સ્વભાવ પણ ખરો.
સંઘના ગણવેશ મા સજ્જ થઇ મે મહીના ના મોરબીના સંઘ શિક્ષા વર્ગ વખતે નવા બસ સ્ટેશને ખડે પગે ઉભા રહી બહાર ગામ થી આવતા સ્વયંસેવકો નું માર્ગદર્શન કરેલ. નરસંગ ટેકરીમંદિરે સંઘ તરફથી સ્વાઇન ફલુના ઉકાળા વહેંચવામા પહોંચી જતા.
બધા ના ગેસ સ્ટવ ના તો તે ડોકટર . ફોન કરો ને હાજર. બધા ડોકટરો ના ઓટોકલેવ માટે વિશેષ ગેસ સ્ટવ પહોંચાડે.
ટૂંકી બિમારી મા બધાનો સાથ છોડી ને આગળ નીકળી ગયા. કહેવાય છે સારા માણસોની ભગવાન ને પણ જરુર પડે. ૐ શાંતિ

Thursday, August 23, 2018

अटलजी को श्रद्धांजली




(दिनांक २१.८.२०१८. गुजरात युनि. कनवेन्शन होल. कर्णावती)
अटलजी कि यहाँ श्रद्धांजलि सभा है यहाँ कई लोग उपस्थित हैं उनका नाम और दायित्व अलग अलग हो सकता है लेकिन सब के लिए कोई एक संबोधन मुझे करना है तो मैं कहूंगा यहाँ उपस्थित अटल प्रेमियों अटल जी के अटल प्रेमीओ। 
अब अटल एक नाम था , है और नाम रहेगा , लेकिन अब अटल विशेषण बन गया। 
अटल जी के लिए कोई विशेषण की ज़रूरत नहीं कोइ कहेंगे संघ के प्रचारक , पत्रकार ,विलक्षण राजनीतिज्ञ ,अच्छे वक्ता ,लेखक ,चिंतक ,वग़ैरह लेकिन अभी सिर्फ़ अटल काफ़ी है और यह अटल ऐसे दूसरे के गुणों के लिए अब विशेषण बन गया।
          अटलजी अपने अभ्यास काल में ग्वालियर से संघ से जुड़े संघ स्वयंसेवकों की आदर्श व्याख्या थे सभी पहलुओं जहाँ उपस्थित है वैसे थेअटल जी।
संघ की शाखा में अटल जी को जोड़ने वाले प्रचारक थे नारायण राव तार्ते। जिसको मामू जी के नाम से सब लोग बुलाते थे अटल जी का उनके साथ अतूट प्रेम रहा 2004 एक दिन रात को १० बजे नागपुर के महाल कार्यालय में PM हाउस से फ़ोन आता है मामूजी से बात करनी है , लेकिन मामूलीसो गए थे दूसरे दिन सुबह में PM हाउस से अटल जी ने बात की क्योंकि मामूजी का जन्मदिन था। कोई भी कार्यकर्ता की छोटी छोटी बात याद रखना वह उनका स्वभावथा
        प्रधानमंत्री बनने के बाद मामुजी को दिल्ली बुलाया तीन दिन साथ रहे , लेकिन यह तीन दिन में कौन सी बात हुई ? कोई सरकार की , सत्ता की , पक्ष की या विदेश नीति ! नहीं यह कोई बात नहीं है बात सिर्फ़ अपने पुराने दिनों की , पुराने मित्रों की ,पुराने स्वयं सेवकों की ,संघ की और प्रत्चारको की।अटल जी कहते थे संघ मेरा आत्मा है।
        अटल जी कौन थे ? जब सत्ता या विचारधारा के बीच क्या चुनना ये नोबत आयी तो सत्ता को छोड़कर विचारधारा के साथ जुड़े रहे संघ की सदस्यता के कारण सभी राजकीय सत्ता के साधन छोड़ के संघ की विचारधारा के साथ जुड़ा रहना यह परम तत्व के उपासक रहे। 
     राजकीय क्षेत्र में कितनी स्वच्छता रखनी चाहिए इसके लिए अटलजी के सिवा और कौन बड़ा उदाहरण हो सकता है
      अटल जी हँसी मज़ाक भी अच्छी कर लेते थे एक बार लताजी को मिले तो कहा तुम्हारे और हमारे नाम में काफ़ी साम्यता है लता जी ने बोला कैसे ? उन्होंने कहा लता जी आपके नामके अंग्रेज़ी मूलाक्षरो को उल्टा कर दीजिए तो अटल हो जाता है। 
      अटल जी भाषण सुनने के लिए बचपन में उनकी ऑडियो कैसेट लेके सभी मित्र रात को घर की टेरेस पर एक छोटे से टेप में सुनते थे। 
      विद्वेष की विभीषिका पर खड़ी हुई अटल जी की कविता याने की कच्छ भुज में बनी सरकारी अस्पताल 2001 की कच्छ के भूकंप के बाद अटल जी का गुजरात आना , गुजरात को भूकंप में सहायता करना और कच्छ को फिर से ठीक करने के लिए उनकी सहाय प्रशंसनीय है।
      2007 की नागपुर की पूजनीय गुरु जी की जन्म शताब्दी के शुभारंभ के अवसर पर वो बोलने के लिए खड़े हुए कहा मैं एक कविता बताऊँगा। लेकिन भावावेश में गुरु जी के साथ बीते बातें करने लगे फिर सुदर्शन जी को याद कराना पड़ा कि आप कुछ कविता कहने वाले थे। 
     गुजरात में दाल हो , सब्ज़ी हो या चटनी सभी जगह गुड तो रहता ही है , इसलिए एक बार सोमनाथ में अटल जी ने खाने के वक़्त कहा गुजरात की चीज़ें और गुजरात के लोग बहोत मीठे हैं। 
     अटलजी अब हमारे साथ नहीं हैं लेकिन यह क्या ज़रूरी है ! राजकोट में गुजरात प्रान्त के पूर्व संघचालक पप्पाजीकी श्रद्धांजलि सभा मे श्रीपति शास्त्री ने कहा था रविंद्रनाथ अपनी कविता में बताते थे कि जब सूर्य को संध्या के समय जाने का वक़्त हो गया तब वह चिंता करने लगा कि अब रात होगी अंधेरा होगा दुनिया का प्रकाश और सबका मार्गदर्शन कौन करेगा तब छोटे से कोने में बैठे एक दीपक ने कहा मैं आपके जैसा तो नहीं लेकिन जितना हो सके उतना थोड़ा सा प्रकाश मैं अवश्य करुगा।  अटलजी जैसे सूर्य सामान प्रभावी सब नहीं हो सकते लेकिन उनके प्रेरक गुणों को लेकर यहाँ एक छोटा दीपक हम नहीं बन सकते ? मैं सोचता हूँ ऐसा छोटे दीपक बनना यही हमारे लिए अटलजी की श्रद्धांजली है