Thursday, September 21, 2017

पूजनीय वक़ील साहब की जन्म शताब्दी के अवसर पर कुछ यादे।


पूजनीय वक़ील साहब की जन्म शताब्दी के अवसर पर कुछ यादे।
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मोरबी मचछु बाँध दुघँटना और मान. वक़ील साहेब
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वक़ील साहब के नामसे संघ सवंयसेवको के बीच जाने जाते ऐसे माऩ लक्ष्मणराव इनामदार नाम के रा सव संघ के प्रचारक और महाराष्ट्र के निवासी और गुजरात जीसकी कमँभूमी रही ऐसे महापुरुष का आज तारीख़ अनुसार जन्मदिन है। उनका गुजरात और शरु के दिनोमे सौराष्ट्र में ज़्यादा रहना  हुआ। उन समय जहाँ जहाँ संघ की शाखाएँ शरु हुइ इसमें से एक गाँव याने की मोरबी। मोरबी के कंइ परिवारों में वह ख़ुद एक स्वजन बन गये थे। उन दिनों के सवंयसेवक वनेचंदभाइ सोमैया, मावजीभाइ छनीयारा , मोहनभाइ सोनगरा और बाबूभाई वडगामा कायँ में लगे हुए थे।
मोरबी की क़ुदरत ने परीक्षा ली। ११ अगस्त १९७९ के दिन सतत चालु रही बारीस की वजहसे मोरबी के पास रहे मचछु २ नंबर का बाँध तूटा। इसका पानी बड़े समुद्र की तराह तीव्र गति से मोरबी शहर और आसपास के गाँवों को ध्वस्त करते चला। अनेक जाने गइ। पशुओकी भी हताहत हुइ। अत्यंत भारी नुक़सान हुआ। इस समय वक़ील साहेब महाराष्ट्र में थे, तुरंत यह समाचार जानकर मुंबई होकर विमान मागँसे राजकोट आये और मोरबी राहत कायँ मागँदशँन में लग गये। उसी दिनसे जब तक पूरा कायँ चला तब तक वो लगे रहे। २३०० से ज़्यादा मानव मृत्यु , उनकी उतर क्रिया , पशु मृत्यु का दाह करना, सफ़ाई कायँ में सब सवंयसेवक के राहबर रहे। सब को कायँ का विभाजन, टोली बनाना, ज़रूरत के सथान पर भेजना, कीए हुए कायँ का मूल्याँकन करना , यह सब करते रहे।
मोरबी बाढ़ मे संघ सवंयसेवक के कायँ का देश और विदेश मे बहोत प्रचार हुआ। अनेक समांचार पत्रोने लीखा। स्वच्छता का सबसे कठीन कायँ कीया। संघ के अलावा विद्यार्थी परिषद, राजकीय और सामाजिक संगठनाए और शासकीय लोगों को भी उनके नेतृत्व का लाभ मीला।
मोरबी मे चलते कायँ के साथ राजकोट मे चल रहे राहत शिखिर वालों का भी ख़याल रखते थे। मुस्लिम समुदाय का रमज़ान का समय आया तो उनकी विशेष वयवसथा भी की ख़याल कीया। अन्योन्य सथान से आते साधन सामग्री और कायँ कताँओकी भी कुनेह से काम मे लगाये। पूर पीड़ित सहायता समिति की रचना बनाइ। सहाय करनेमे कोइ छूट ना जाय यह ध्यान रखते थे।
बादमे पुन:ह निमाँण के कायँ मे वधँमाननगर नगर और जनकलयाण नगर उनकी निगरानी मे बनाये गये। सवंयसेवक की समाजसेवा का भाव सतत चलता रहे इसलिए वो ख़ुद कभी विराम नही करते थे। ऐसा कठीन सेवा कायँ करने के लीए नित्य सिद्ध शाखा की शक्ति और यह समाज मेरा है यह भाव जगाये रखा।
पुन: निमाँण से बने नये घर वितरण मे पूर पीड़ित को ही मीलें यह ध्यान रखा। यह संपूणँ समय मे उनका राजकोट और मोरबी के बीच दौरा चलता रहा।वो कभी पत्रकार के पास नही जाते थे। लेकिन यह निमाँण कायँ के बाद वो पत्रकार को जानकारी देने के लीए उपस्थित रहे।
ऐसे वक़ील साहेब का दशँन मुझे मोरबी बाढ़ के बाद के कायँ समय और १९८० के कड़ी संघ शिक्षा वगँ मे हुआ था। मोरबी के एक हिन्दु संमेलन मे पधारे गीता मंदिर के मनहरलालजी महाराज ने कहा की वक़ील साहेब अनेक बार भोजन कीए बिना भी संघ कायँ मे लगे रहते थे। ऐसे रुषी को जन्म शताब्दी के अवसर पर प्रणाम । 

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