Thursday, September 15, 2022

शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम्


 शिक्षा संगम - समर्थ भारत ( सुरतदिनांक १३..२२

          गुजरात की सूरत जैसी औद्योगिक और समृद्ध और खाने पीने के लिए पहचाने जाने वाली महानगरी में आज समर्थ भारत ट्रस्टआयोजित शिक्षा संगम में आप सबके बीच उपस्थित होने का मुझे आनंद है 

       स्वतंत्र भारत में अब नई शिक्षा नीति के अंतर्गत शिक्षा जगत में एक सामूहिक मंथन का आयोजन इस संगम में हुआ है ।कुछ पूर्वनिर्धारित प्रवास के कारण में आपके नजदीक नहीं होने से आभी माध्यम से जुड़ रहा हूं।     

      जब हम शिक्षा के बारे में सोचते हैं तब शिक्षा का उद्देश्य क्या है यह जानना जरूरी है ।जो पूर्व और आने वाले सत्र में होगा ही। इसउद्देश्य की पूर्ति के लिए काम करने वाले आचार्य गण , शिक्षा लेने वाले विद्यार्थि गण और उनके पाठ्यक्रम बनाने वाले का महत्व है ।लेकिन अगर पात्र ठीक नहीं होता तो उस में डाली हुई चीजें जो परिणाम देना चाहती है वह नहीं मिल सकी। इसलिए हमारे यहां प्राचीनकाल से गुरुकुल प्रथा से और आगे भी (माननीय धर्मपाल जी अपना पुस्तक ब्यूटीफुल ट्री में बताते हैं कि )पंचकोशी  प्रशिक्षण कीकीबैग कहीं गइ है। इसमें सिद्धांत और व्यवहारिक दोनों चीजें आती है। शारीरिक -शरीर को ठीक रखने की बातें , पात्र को ठीक रखनेके क्रम और उनका अभ्यास व्यवहार में कैसे लेना यह सोचना चाहिए  

       फिर से याद दिलाए के पात्र ठीक नहीं है तो पात्र में डाली हुइ चीज टिकती नहीं , बिगड़ जाती है और जो है उनके गुण धर्मों में बदलहोता है ।और  हम जो चाहते हैं वह नहीं बन सकता ।इसलिए हमारे शास्त्रों में बताया गया है शरीर ठीक तो बाक़ी सबकुछ ठीक  

         शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम्

       अंग्रेजी में कहा जाता है  Health is wealth 

शरीर ठीक होना अभ्यास के लिए कितना महत्व का है यह , हमारे स्वतंत्रता आंदोलन थे प्रखर नेता लोकमान्य तिलक अपने अभ्यास केके समय दरमियान कुछ स्वास्थ्य बिगड़ गया तो पढ़ने में 1 साल की छुट्टी ले ली और शरीर ठीक होने जाने के बाद ही उसने पुनः अभ्यासआरंभ किया ।अगर शरीर ठीक नहीं है तो अभ्यास अच्छी तरह से नहीं हो सकता यह बताते हैं। 

        कवि कालिदास साहित्यकार होने के साथ-साथ हो बताते हैं सभी पेशीओका का घोंसला यह शरीर है। उस पर मांस वगैरह लगेहुए हैं ।चमड़े की खाला लगी हुइ है। मांसपेशियों से हलनचलन की सहायता मिलती है और उनका आधार हड्डी है और हड्डी जहां जुड़तीहै वह संधि है ।यह हमारे शरीर की रचना है ।यह रचना हमारे धर्म कार्य का साधन है

       शरीर रूपी साधन  को ठीक रखने के लिए और भगवान ने बनाया हुआ यह यंत्र लंबे समय तक चलता रहा है इसलिए शिक्षाव्यवस्था में यह भी चीज बताने जरूरी है जैसे कि हमारा भोजन स्वस्थ और समतोल होशरीर के लिए जरूरी व्यायाम हो ,योग्य मात्रा मेंविश्राम और नींद की भी आवश्यकता है ।पूरे समय पर हमारे श्वसन की गति कैसी हो इसका भी महत्व है ।कैसे चलना ,कैसे बैठना ,कैसेखड़े रहना ,यह सब बहुत महत्व की बातें है ।जो आज की चलती हुई ,दौड़ती हुई ,हमारी जिंदगी में हम बेसिक बातें भूल जाते हैं ।औरशिक्षा लेने में शरीर पर से ध्यान चला जाता है।कई बार तो शिक्षा के हमारे विद्यालयों में छोटी-छोटी बातों की ओर ध्यान किसी का नहींजाता ,  आचार्य का जाता है ना हमारे विद्यालय के व्यवस्थापक का और पालक का  

          बताया जाता है कि हमारे शरीर के लिए व्यायाम भी होना चाहिए ।कम से कम आधा घंटा पसीना वह ऐसा काम करना चाहिए ।जब ऐसी बात बताते हैं तो ना हमारे विद्यार्थी के माता-पिता तैयार होते हैं और ना शिक्षा संस्थान ।अभ्यास में इसके लिए  समय रहता हैऔर  पसीना बहाने की बात आती है ।तो मुझे याद आता है गुजराती के हास्य लेखक ज्योतिद्र दवे जो  दुबले पतले  थेउन्हे किसी नेकहा शरीर ठीक करना है तो व्यायाम करना चाहिए ,उन्होंने पूछा कितना चाहिएबताने वाले ने कहा जब तक पसीना  जाए तब तक ।वह 1 दिन सुबह में उठकर व्यायाम शाला में गए वहां व्यायाम करते हुए अन्य लोगों को देखकर खड़े-खड़े उनको पसीना  गया ।वापस गए उन्होंने हंसते हुए कहा व्यायाम करने वाले को देखकर ही मुझे पसीना आता है मुझे कुछ व्यायाम की जरूरत नहीं है।       

        इसलिए आज नई शिक्षा नीति में शरीर रूपी माध्यम को ठीक करने के लिए शारीरिक प्रशिक्षण का अभ्यासक्रम और उनको पढ़ानेवाले और उनके पाठ्यक्रम के बारे में चिंता करनी चाहिए।विश्व आरोग्य संस्था ने भी बताया है कि स्वस्थ शरीर की व्याख्या में शारीरिक,मानसिक ,बौद्धिक ,सामाजिक ,सांस्कृतिक और आध्यात्मिक  स्वास्थ्की बात है  इसका अभाव ही रोग है  Health is a state of complete physical mental and social wellbeing  and not nearly absence of disease or infarmity

       शारीरिक शिक्षा के अभ्यासक्रम की शुरुआत अपने परिवार में ही होती है  परिवार के जीवन पद्धति ,उनकी दिनचर्या ,दिन में कामकरने के क्रम ,माता पिता और परिवार के लोगों द्वारा शिक्षा , समाज , अडोश पड़ोस और शिक्षा संस्थान ना महत्वका सहयोग आवश्यकहै  

आगे चलकर जब बच्चा पढ़ाई के लिए शिक्षा संस्थान में जाता है तब शिक्षा संस्थानअभ्यासक्रम ,आचार्य ,वातावरण ,शिक्षा संकुल केव्यवस्थापक ,सरकार वगैरे का रोल आता है ।इसलिए स्वास्थ्य शिक्षा के अभ्यासक्रम के लिए  सिर्फ सरकार शिक्षा संस्थान , लेकिनपरिवार का भी महत्व है ।हमारे यहां ऐसा बताया जाता था की शरीर में रोग आने से पहले ही उनको  रोकना  चाहिए ।इसलिए एककहानी है

 ।एक गांव में राजा के पास तीन वैद्य आए ।तीनों वैद्य की श्रेष्ठता क्या है ,यह देखने के लिए राजा ने उनसे अपनी योग्यता पूछी। , एकवैद्य ने कहा मैं किसी भी मरीज को रोग पूर्ण रुपसे निखरता है तब मै दवाए दे सकता हुदूसरे वैद्यने बताया कि मैं जब मरीज को रोग  कीशुरू होता है तब ही उनको ठीक करने का काम करता हु।लेकिन तीसरा वैद्य ने कहा मैं मेरे सामाजिक विस्तार में मरीज को रोग आने सेपहले ही उनको कैसे रोके इसके लिए काम करता हूं ।वह तीसरा वैद् सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। 

        Prevention is better than cure . हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने बताया है कि हमारी शिक्षा योग आधारित होनी चाहिए ।ऋषि पतंजलि ने इसके लिए अष्टांग योग की रचना की और महत्व बताया है ।अष्टांग योग में यम ,नियम ,आसन ,प्राणायामप्रत्याहार,धारणा ,ध्यान और समाधि का महत्व बताया गया है  इसके अंतर्गत क्या-क्या चीजें आती है जैसे यम नियम मे और भी बातें जाननीहै। 

पुनरुत्थान ट्रस्ट के इंदुमतीबेन काटधरे  बार-बार बताती है कि अगर अभ्यासक्रम में योग शिक्षा का महत्व समझ लिया तो और कुछसमझने की जरूरत नहीं है ।हमारे यहां लोग मानने लगे हैं कि सिर्फ योगासन ही योग है। यह ठीक नहीं है उसके साथ और काफी कुछचीजें है ।वह समझ कर अभ्यासक्रम में उनका व्यवहारिक उपयोग हुआ तो विद्यार्थी एक अभ्यासमे ही नहीं आने वाले अपने जीवनमे भीशुद्ध ,स्वस्थ और लंबी उम्र वाला बन सकता है। 

        आधारित शिक्षा में सिर्फ शारीरिक बातें ही नहीं है।

इसमें योग और शारीरिक के साथ नियम पालन ,चित्त शुद्धि ,स्वच्छता ,सेवा कार्यक्रम कार्य जैसी बातें भी आती है ।जैसे बच्चों द्वारा पंछीको दाना खिलाना ,यह सिर्फ सेवा नहीं है ।यह आनंद है ।ऐसे आनंद की क्रिया भी एक सहज योग है जो शरीर को स्वस्थ बनाती है शाला परिसर में श्रम कार्य का भी महत्व रहना चाहिए ।अपने कक्ष की सफाई करना ,पानी के साधन को ठीक रखना ,अपने कक्ष की बेंचस्वयं ही ठीक रखना ,ऐसे श्रम कार्य करने में बच्चों के आनंद के साथ श्रम करनेकी आदत होती है  अपने अंदर स्पर्धा का भाव जगता है।वैसे क्लास रूम में बैठे बैठे कुछ  कुछ करते रहनेकी आदत डालनी चाहीए।  इससे पढ़ने के समय नींद कम आती और शरीर स्वस्थरहता है।

     अपने शिक्षा परिसर में अभ्यास शुरू होने से पहले  का उच्चारण करना ना बहुत महत्व की बात है ।जिससे वातावरण  चार्ज होजाता है।मन भी स्वस्थ बनता है ।एकाग्रता की एक आदत बनती है। है यह सिर्फ  शरीर को मन को भी बलवान बनाती हैं ।कैसेऑपरेशन के पहले एनेस्थीसिया। योग है वह रोग के लिए नहीं है ।हम कभी तलवार से भिंडी की सब्जी नहीं काटते ,लेकिन शरीर कोस्वस्थ रखना ,रोगों को दूर रखने के लिए ही योग जीवन पद्धति में आना चाहिए ।यह हमारे अभ्यासक्रम में दिखाना सिखाना और उपयोगमें लाना चाहिए। 

तस्य वाचकप्रणवा

         हमारी शिक्षा पद्धति में

श्रम प्रधान कार्य का महत्व बढ़ाना पड़ेगा।

सिर्फ फिजिकल एजुकेशन नहींउनका तास सिर्फ काफी नहीं हैपरिसर में हर परिश्रम  के काम में आचार्य और विद्यार्थी जुड़े यहआवश्यक है, परिसर की सफाईपानी का इंतजामतास के साथ जुड़े छोटे बड़े श्रम काम में जुड़ने की आदत शरीर को भी ठीक रखतीहै और अपनापन का भाव जगता है।

      इससे घर में भी आदत हो जाति की मेरा काम मैं ख़ुद करुंगा।ट्री प्लांटेशनपानी पिलाना , छोट बड़े व्यवसायीक काम भी शिखाएजाएकभी समय समय पर ऐसे काम करने वाले की जगह मुलाकात करके स्वयं दिखाना भी जरूरी हैजैसे खेत में काम करते किशानमजदूर वि .

       शिक्षा के साथ NCC, NSS, scout  व्यायाम शाला वि जगा हमारे विद्यार्थी जुड़े यह व्यवस्था और मार्ग दर्शन करना पड़ेगाफर्स्ट एड के काम भी सिखाए जाए। 

       अभ्यक्रम में खेलो का महत्व है। खेल के विविध प्रकार सिखाना , स्वदेशी खेलो का महत्व ज्यादा होस्थानिक उपलब्धियों से खेलबनाना बताया जाए ।स्वदेशी खेल में कम साधनों में खेले जाने वाले खेल होनी चाहिए ।विदेश के प्रति ममता बढ़ाता ठीक नही।इससे दूररहने का प्रयत्न करना चाहिए ।खेलों में शरीर का तो स्वास्थ्य ठीक रखने में मदद। रहती है लेकिन उनके साथ अन्य उपलब्धियां भी है-जैसे हार जीत में समभाव रहना ,टीमस्पिरिट बनाते रहना ,प्रमाणिकता खेल में कैसे रहे ,वह सीखना ,व्यक्तिगत और सामूहिक दोनोंप्रकार की  खेल होने चाहिए ।विविध प्रकार के शारीरिक प्रदर्शन का भी महत्व है ।अपने विविध उत्सव में उनका प्रदर्शन होना ।एकसामूहिक मनोभाव बनाने के लिए योगासन , समता संचलन हो। यह सभी प्रोत्साहन स्कूलमें भी हो और साथ-साथ गाइडिंग प्रिंसभीकार्यक्रमों में शिक्षा के मुख्य अध्यापक ,आचार्य अभिभावक ,माता पिता सबका एक स्थान है ।सब को सम्मिलित होना बहुत महत्व कीबात है।

      शरीर रूपी हमारा माध्यम कैसा है उनका बार-बार परीक्षण करते रहना ।मूल्यांकन करते रहना उसके अनुसार सुधार करना यह भीहमारी शिक्षा नीति में हो। शारीरिक अभ्यास क्रम के बारे में बताया जाना चाहिए ।स्वास्थ्य के जो मानक है जैसे वजन ,ऊचाइ,विविधआरोग्य परीक्षण हो ,स्वास्थ्य केंद्रों की सलाह हो ,रसिकरण का शेड्यूल हो ,आयन और विटामिनों की कमी और उनकी पूर्ति हो ।यहसभी भी शरीर रूपी हमारा माध्यम ठीक रखने के लिए ही बताया गया है ।अपने अभ्यासक्रम के साथ साथ ऐसा उनके विविध कोशिश मेंतो होना चाहिए। लेकिन साथ-साथ स्कूल कैलेंडर में भी इनके लिए जगह चाहिए।

           स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन रहता है  शरीर की स्वास्थ्य के लिए बाहरी स्वच्छता का भी इतना महत्व है। स्नान मे ठंडा पानी औरपीने में गर्म पानी हमारा पुराना आयुर्वेद का सिद्धांत है  हाथ मुंह धोना ,बाहर से आने के बाद हाथ पैर धोनेकी  की आदत बनाना ।यहसब कुछ कोरोनावायरस ने सिखा दिया था समयांतर पर नाखून काटना  क्या खाना ,कब खाना ,कैसे खाना खानाखाना खाने मेंकैलोरी का क्या महत्व है और आर्टिफिशियल चीजों से दूर रहना (कॉम्प्लान बोस का अभ्यास क्रम में बताया जाये   माता पिता केसाथ हुई बैठक में विषयों में बताया जाता है  विद्यालयों में विद्यार्थी अपने साथ में नाश्ता है उसमें क्या लेना चाहिए सूचना दी जाती है , जो बाजार में मिलता है वह और टीवी के सामने बैठकर या मोबाइल के साथ काम करते करते खाना पीना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नही है।लेकिन उनमें चलते विचारों से प्रति हमारे भोजन का पाचन भी ठीक नहीं होता और अनेक नए रोगो को यह निमंत्रण देता है

      शरीर रूपी माध्यम को ठीक करने के लिए जीवन में एकाग्रता का महत्व है ।ध्यान धारणा समाधि यह उनके अंतिम स्वरूप है ।छोटेबड़े प्रयत्नों से अगर ध्यान सिखाया जाता है तो मानसिक तनाव भी कम होता है ।नींद भी अच्छीआती है।हम बड़े-बड़े अपने घर बनाते हैंऔर उनमे खिड़कियां रहती है लेकिन के ऊपर परदे डाले जाते हैं और ऐसी की हवा चलती है ।ऐसे चलेंगे तो नींद भी अच्छी कैसे सकती ? स्वास्थ्य पूर्ण वातावरण भी महत्व है। 

       इतना ही नहीं अभ्यास क्रम में बताई जाती वंदना और प्रार्थना यह सिर्फ भगवान के नाम स्मरण और अध्यात्मिक धार्मिक तैयार नहींहै ।उनसे मन की एकाग्रता बढ़ती है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था अगर मुझे दूसरा जन्म मिले तो फिर से मैं एकाग्र होकर और ज्यादापढ़ना चाहता हूं 

        सा विद्या या विमुकतये। हमारी राष्ट्रीय शिक्षा हमारे दर्शन के अनुसार होना यह हमने आवश्यक माना है ।व्यक्तिगत विकास औरसामाजिक जीवन के उद्देश्य के लिए हमारी शिक्षा पद्धति होनी चाहिए ।बार-बार बताया जाता है कि हमारी शिक्षा की अवधारणा योगआधारित है ।जीवन में भी पंचमुखी ,व्यवसाय ,मानसिक आध्यात्मिकसामाजिक ऐसी सभी विषयों की शिक्षा हो ।साथ-साथज्ञानेन्द्रिय  और कर्मेंद्रिय का भी संतुलन रहना चाहिए ।यह नहीं रहा तो संपूर्ण विकास नहीं कर सकते 

      हमारी प्राणशक्तिइच्छाशक्ति और बौद्धिक शक्ति हमारे संपूर्ण आत्मा को लेकर शरीर को भी ठीक बनाने में मदद करती है ।जीवनका सुख सिर्फ लेने में नहीं है ,देने में है ।यह शरीर के माध्यम से अच्छा है बताया जा सकता है ।हमारे राष्ट्र शास्त्रों के चिंतन में यही बातबार-बार बताई जाती है ।हमारे जीवन मूल्योमे व्यक्तिगत ,आर्थिक ,सामाजिक ,बौद्धिक और अध्यात्मिक ,आध्यात्मिक और अन्य बातेंशरीर के साथ साथ चलती है ।यह सभी मूल्यों के विकास के लिए स्वस्थ शरीर की आवश्यकता है ।सिर्फ शरीर की सुंदरता नहीं ,अंदरइन्हीं मूल्यों से भी बाहर की सुंदरता बढ़ती है ।क्योंकि इनसे उनको आनंद मिलता है।

      स्वामी विवेकानंद कहते हैं अनंत शक्ति धर्म है ।बल पुण्य है ।दुर्बलता पाप है ।पाप और अनीष्ट का शब्द दुर्बलता है  वह बताते थेकि हमारी मांसपेशी लोहे  कि होनी चाहिए और स्नायु हमारे पेलाद के होना चाहिए ।अगर हमारा शरीर ठीक नहीं रहा तो हम हमारा ज्ञानका प्रचार प्रसार नहीं कर सकते। अगर गीता का अभ्यास करना है तो फुटबॉल के मैदान में जाना चाहिए और अपने पैर पर खड़ा होने केबाद ही हम उपनिषद समज सकते है  

     हमारे शरीर की शिक्षा शरीर तक सीमित नहीं है "अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या "

अष्ट चक्रों वाली और नव द्वार वाला यह शरीर अयोध्या जैसा पवित्र है। भारतीय शिक्षा क्रम में जो  जरुरी है उनको ठीक रखना चाहिए ।नई शिक्षा नीति तो आएगी लेकिन शिक्षा नीति के अम्लीकरण  करने वाले लोग के मन भी तैयार रहना चाहिए ।यह तो सब नया है यहठीक नहीं है वह पुराना था ,वह ठीक है वगैरह वगैरह बहाने बनाकर नई चीजों का स्वागत  करने का स्वभाव ठीक नहीं है ।शिक्षा में जैसासाहित्य ,समाज ,पर्यावरण और स्वास्थ्य ,विज्ञान ,गणित का महत्व ठीक रखने के लिए शारीरिक शिक्षण का अभ्यासक्रम भी काफीमहत्व का है। हम अपने समाज और राष्ट्र को स्वस्थ रखना चाहते है लेकिन आने वाले समय में दुनिया का भी स्वास्थ्य ठीक रखनेका  रास्ता बताना चाहते हैं ।यह रास्ते का चिंतन नई शिक्षा नीति मे है  

हमारे विश्व कल्याण के मार्ग पर जाने के लिए , हमारा कर्तव्य बजानेके लिए शरीर रुपी माध्यम के ठीक रखकर हमारा धर्म पूर्ण करे। 


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